Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 80
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन 1 अपने में से अपनापन खो जाना ही अनन्त दुःखों का कारण है और अपने में अपनापन हो जाना ही अनन्त सुख का कारण है । अनादिकाल से यह आत्मा अपने को भूलकर ही अनन्त दुःख उठा रहा है और अपने को जानकर, पहिचानकर, अपने में ही जमकर, रमकर, अनन्त सुखी हो सकता है। ७६ दुःखों से मुक्ति के मार्ग में अपने में अपनापन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । एक सेट था और उसका एक दो-ढाई वर्ष का इकलौता बेटा । घर के सामने खेलते-खेलते वह कुछ आगे बढ़ गया। घर की खोज में वह दिग्भ्रमित हो गया और पूर्व के बजाय पश्चिम की ओर बढ़ गया । बहुत खोजने पर भी उसे अपना घर नहीं मिला। घरवालों ने भी बहुत खोज की, पर पार न पड़ी। वह रात उसे गली-कूचों में ही रोते-रोते बितानी पड़ी । प्रात:काल तक उसकी हालत ही बदल गई थी, कपड़े गंदे हो गये और चेहरा मलिन, दीन-हीन । बहुत कुछ प्रयत्नों के बाद भी न उसे घर मिला और न घरवालों को वह । भीख मांगकर पेट भरने के अतिरिक्त कोई रास्ता न रहा। थोड़ा बड़ा होने पर लोग कहने लगे- काम क्यों नहीं करता? आखिर एक हलवाई की दुकान पर बर्तन साफ करने का काम करने लगा । पुत्र के वियोग में सेठ का घर भी अस्त-व्यस्त हो गया था। अब न किसी को खाने-पीने में रस रह गया था और न आमोद-प्रमोद का प्रसंग ही। घर में सदा मातम का वातावरण ही बना रहता । ऐसे घरों में घरेलू नौकर भी नहीं टिकते; क्योंकि वे भी तो हंसी-खुशी के वातावरण में रहना चाहते हैं । अतः उनका चौका बर्तन करने वाला - नौकर भी नौकरी छोड़ कर चला गया था । अत: उन्हें एक घरेलू नौकर की आवश्यकता थी । आखिर उस सेठ ने उसी हलवाई से नौकर की व्यवस्था करने को कहा और वह सात-आठ साल का बालक अपने ही घर में नौकर बन कर आ गया ।

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