Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 115
________________ १११ अयोध्या समस्या पर वार्ता जिससे किसी को दुःख नहीं पहुँचेगा। राजनैतिक लोग धर्मगुरुओं का मार्गदर्शन न करें; लेकिन धर्मगुरु विशाल हृदय को लेकर इस मामले को सुलझायें और वे निर्णय लेकर राजनीतिज्ञों से कहें कि हमने यह निर्णय लिया है, आप इसे लागू कीजिए। यह रास्ता ही सही है। प्रश्न- भारिल्ल साहब! क्या आप इस बारे में कुछ कहना चाहेंगे कि दोनों पक्ष बैठकर बात करें और उन बातों को गौण करें, जो हम आपस में नहीं सुलझा सकते हैं। जो हम नहीं सुलझा सकते, उनको हम पंचों के फैसले के लिए दें और इसके पीछे कोई शर्त, कोई समयसीमा निश्चित नहीं करें। आपकी क्या राय है ? ___ डॉ. साहब-बात अकेले मन्दिर अथवा मस्जिद की नहीं है। सवाल बुड्डी के मरने का नहीं है, मौत घर देख गई है - समस्या यह है। उस स्थान पर मन्दिर बने या मस्जिद - इतना ही मुद्दा नहीं है। हमारे मुस्लिम भाईयों को ऐसा लगता है कि आज यहाँ हुआ, कल मथुरा में होगा, परसों बनारस में होगा। तो क्या सारी मस्जिदें मन्दिर में बदल जायेगी ? समस्या यह है और इस समस्या के समाधान हेतु दोनों पक्षों को निर्मल हृदय से बात करनी होगी। यदि बात अयोध्या तक ही सीमित होती तो अबतक निपट गई होती। ____ मैंने कल ही अखबार में पढ़ा कि एक भाई कहता है सवाल यह नहीं है कि वहाँ मन्दिर बनेगा या नहीं ? सवाल यह है कि इस देश में हिन्दू संस्कृति चलेगी अथवा नहीं ? यह जो भावना है, वह समस्या को हल नहीं होने देती। इससे जब वार्ता करने बैठेंगे तो पीछे से दबाब बनेगा कि यदि फैसला हमारे पक्ष में नहीं हुआ तो हम यह कर देंगे, हम वह कर देंगे। दोनों ओर से धमकियाँ देकर अपने अनुकूल निर्णय कराने का प्रयत्न होगा और इसीलिए समय सीमा बाँधी जायेगी। वास्तव में साफ हृदय से काम हो तो काम ३ माह का भी नहीं है। यदि खुले हृदय से नहीं किया तो वर्षों तक निपटनेवाला नहीं है। प्रश्न - भारतीय संस्कृति तो हमेशा प्रेम और सहयोग की रही है। उस परम्परा में टकराव की स्थितियाँ कैसे आ गईं और समस्या कैसी उत्पन्न

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