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णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन
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की दीवालें, जाति की दीवालें, भाषा की दीवालें, प्रान्त की दीवालें; चारों ओर दीवालें ही दीवालें हैं और ये दीवालें निरन्तर ऊँची होती जा रही हैं।
दीवाल को अंग्रेजी में वाल कहते है। आज हम इन वालों-दीवालों के बीच विभक्त हो गये हैं। कोई खण्डेलवाल है, कोई अग्रवाल है, कोई ओसवाल; पर जैन कोई भी दिखाई नहीं देता ।
यदि हम इन वालों-दीवालों को गिरा दें और सभी जैनत्व के महासागर में समाहित हो जावें तो हम वीतराग वाणी को जन-जन तक पहुँचा सकते हैं, और यह वीतराग वाणी जन-जन तक पहुँचकर सम्पूर्ण जगत को सुख-शान्ति का मार्ग दिखा सकती है। अतः अब समय आ गया है कि हम साम्प्रदायिक बाड़ों में कैद न रहें, जाति, प्रान्त और भाषा की सीमाओं में सीमित न रहें ।
यदि हम अहिंसारूपी वीतरागी तत्त्वज्ञान को असीम जगत तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमें इन छुद्र सीमाओं को भेदकर इनसे बाहर आकर महावीर वाणी के सार को जन-जन तक पहुँचाने के महान कार्य में जी-जान से जुट जाना चाहिये। यही सन्मार्ग है और इसी में हम सबका हित निहित है। .
अतः इस अवसर पर कॉन्फ्रेन्स के कर्णधारों एवं आप सबसे मैं यह मार्मिक अपील करना चाहता हूँ कि समय रहते हम इस ओर ध्यान दें, सभीप्रकार के आपसी मतभेदों को भुलाकर आगामी पीढ़ी को संस्कारित करने का दृढ़ संकल्प करें, उस दिशा में सक्रिय हों; अन्यथा हमारी इस उपेक्षा का परिणाम आगामी एक नहीं अनेक पीढ़ियों को भुगतना होगा ।
हमारी इस सामयिक चेतावनी एवं एकता की अपील को न केवल सभी ने शान्ति से सुना ही, अपितु उसकी गंभीरता को गहराई से अनुभव भी किया। उक्त प्रसंग में सहज ही निकट सम्पर्क होने से भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मलकुमारजी सेठी से दिगम्बर जैनसमाज की आज की समस्याओं पर भी थोड़ी-बहुत चर्चा हुई। व्यस्त कार्यक्रमों के कारण समयाभाव होने से विस्तृत चर्चा तो न हो सकी, पर जो भी चर्चा हुई, उसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है :
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