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णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन निवारण हम आपसे करना चाहते हैं।
मैंने कहा - "अवश्य पूछिए, क्या पूछना चाहते हैं ?"
उन्होंने कहा – “एक तो आप यह बताइये कि आप कोई नया पंथ तो नहीं चलाना चाहते ?"
मैंने कहा- “एकदम नहीं, हम कोई नया पंथ नहीं चलाना चाहते। आप ही हमें कानजी पंथी' कहते हैं, हमने स्वयं तो कभी अपने को 'कानजी पंथी' कहा ही नहीं।"
वे बोले – “क्या यह सत्य है ?" मैंने कहा - "इसमें क्या शक ?"
वे फिर बोले - "आप अभी तो कह रहे हैं, पर फिर बदल न जाइयेगा।" ___ मैंने कहा- “क्या बात करते हैं ? हम उनमें से नहीं हैं, जो कहकर बदल जाते हैं; अभी तक आपका और हमारा व्यवहार नहीं हुआ है, अत: आप इसप्रकार की बातें कर रहे हैं।"
वे बोले - "हमें विश्वास नहीं होता। इसलिए मैं यह बात कर रहा हूँ। आप कहें तो मैं यह बात छपवा दूं।"
मैंने कहा- "अवश्य छपवा दीजिए। आप क्या मैं स्वयं ही इस बात को लिखूगा। फिर तो आपको कोई शंका नहीं रहेगी।"
उन्होंने मेरी इस बात पर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की। फिर कहने लगे
“अपन श्रवणबेलगोला में सहस्राब्दी समारोह पर मिले थे, बहुत चर्चा भी की थी, पर उसके बाद मिलना नहीं हुआ। अभी मवाना शिविर के पहले दिल्ली में भी आपने चर्चा नहीं की।"
मैंने कहा - "रूपचंदजी कटारिया ने बात की थी, पर उस समय वातावरण कितना विषाक्त था। क्या ऐसे विषाक्त वातावरण में भी कोई चर्चा सफल हो सकती है ? चर्चा के लिए सौम्य वातावरण चाहिए, सहज वातावरण चाहिए।
चर्चा मात्र चर्चा के लिए ही तो नहीं करनी है। कुछ रास्ता निकले, तभी