Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 106
________________ १०२ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन मरण शान्ति से समाधिमरण हो- इसके लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि मैं तुम्हारी ओर से निश्चिंत हो जाऊँ क्योंकि अब इस दुनिया में तुम्हारे अतिरिक्त मेरा है ही कौन ? पिता का इसप्रकार का पत्र पाकर वह चिन्तामग्न हो गई, साहस बटोर कर पति के पास पहुँची। देखते ही पति व्यंग्यबाण छोड़ता हुआ बोला- "अच्छा अब आ गई महारानीजी, आ गई अकल ठिकाने" मर्माहत वह बोली- “चिन्ता न करें, मैं रहने नहीं आई हूँ; यह पत्र आया है, यही दिखाने आई हूँ।" पत्र लेते हुए पति बोला – “किसका है ? क्या लिखा है ?" पत्र देते हुए पत्नी बोली- “पिताजी का।" पत्र पढ़कर पति बोला इस पत्र के संदर्भ में मुझसे क्या चाहती हो ? मैं क्या कर सकता हूँ ? तुम्हारे पिताजी के लिए। पत्नी बोली- “यदि हम चाहें तो पिताजी का मरण तो सुधर ही सकता है" "कैसे?" "सात दिन तक प्रेमपूर्वक रह कर।" "प्रस्ताव तो बुरा नहीं है, पर हममें अपस में प्रेम है कहाँ ?" "बात प्रेम होने की नहीं है, प्रेम से रहने का नाटक करने की है।" "पर.........." “पर क्या ? क्या हम पिताजी के लिए इतना भी बलिदान नहीं कर सकते?" "क्यों नहीं ?" इसप्रकार सुनिश्चित करके सुनिश्चित दिन पर दोनों ही एकसाथ मिलकर पिताजी को लेने स्टेशन पहुँचे, प्रेम से उन्हें लाए, सात दिन तक इसप्रकार रहे कि मानो उनमें प्रगाढ़ स्नेह हो, वे आदर्श दम्पति हों। सात दिन बाद जब वे उन्हें स्टेशन पर विदा करने गये, तब उन्हें विदा

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