Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन अधिक क्या कहें - जीवन में करने योग्य एकमात्र कार्य यही है, इसे ही स्वद्रव्य का आश्रय कहते हैं और यही सुगति भी है, बंध का निरोध भी इसी से होता है। ९२ अच्छा तो अब कल्पना कीजिए कि उस बालक को माँ दिखाई दे गई और उसने उसे अच्छी तरह पहिचान भी लिया कि यही मेरी माँ है तो फिर वह दौड़कर माँ के पास जायेगा या पुलिसवाले के पास यह सूचना देने कि मेरी माँ मिल गई है। निश्चित रूप से वह माँ के ही पास जायेगा; क्योंकि एक तो वह माँ के वियोग में तड़फ रहा था और दूसरे यह भी तो खतरा है कि जबतक वह पुलिस को सूचना देने जाता है तबतक माँ फिर आँखों से ओझल हो गई तो. अतः वह तेजी से दौड़कर माँ के पास पहुँचेगा; पहुँचेगा ही नहीं, उससे लिपट जायेगा; माँ और बेटा तन्मय हो जावेंगे, अभेद हो जावेंगे, एक रूप हो जावेंगे । उसीप्रकार जब इस आत्मा की दृष्टि में निज भगवान आत्मा आता है, तब यह गुरु को या किसी अन्य को यह बताने नहीं दौड़ता कि मुझे आत्मा का अनुभव हो गया है; अपितु निज भगवान आत्मा में ही तन्मय हो जाता है, अपने में ही समा जाता है, एकरूप हो जाता है, अभेद हो जाता है, विकल्पातीत हो जाता है । जब वह माँ की ओर दौड़ा तो पुलिसवाला भी घबड़ाया और उसके पीछे वह भी दौड़ा। पुलिसवाले की घबराहट का कारण यह था कि यदि बच्चा भी भीड़ में गायब हो गया तो मुश्किल हो जायेगी; क्योंकि उसकी तो रिपोर्ट लिखी हुई है। पुलिस की कस्टडी से बालक का गायब हो जाना, उसकी नौकरी जाने का कारण भी बन सकता है। जब पुलिसवाला वहाँ पहुँचा तो क्या देखता है कि वह बालक किसी अधेड़ महिला से एकमेक हो रहा है, दोनों एक-दूसरे से तन्मय हो रहे हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116