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अपनी खोज
बालक को माँ मिल गई, बस, वह तो उसमें मग्न है, तृप्त है; पर माँ के सामने एक समस्या है कि बालक के खोने पर उसने एक घोषणा की थी कि जो व्यक्ति बालक को उससे मिलायेगा, खोज लायेगा; उसे वह ५०० रुपये पुरस्कार देगी। अब वह पुरस्कार किसे दिया जायपुलिस को, बालक को या माँ को? . पुलिस ने तो कुछ किया ही नहीं, माँ को तो बालक ने ही खोजा है और बालक को माँ ने खोजा है। पुलिस तो पुरस्कार पाने योग्य नहीं और माँ पुरस्कार देनेवाली है; अब बालक ही शेष रहता है, पर बालक को तो पुरस्कार नहीं, माँ चाहिए थी, जो उसे मिल गई है; अब उसे पुरस्कार में कोई रस नहीं है। वह तो अपनी माँ में ही इतना तृप्त है कि पुरस्कार की ओर उसका लक्ष्य ही नहीं है। ___ भाई, पुलिस का कोई योगदान ही न हो, यह बात भी नहीं है। आखिर बालक ने अपनी माँ की खोज पुलिस की सुरक्षा में ही की है, पुलिस के मार्गदर्शन में ही की है, यदि पुलिस की सुरक्षा उसे न मिली होती तो बालकों को उड़ाने वाला कोई गिरोह उसे उड़ा ले गया होता। ___ यदि पुलिसवाले मार्मिक बिन्दु पर उसे खड़ा नहीं करते तो माँ की खोज में बालक यहाँ-वहाँ मारा-मारा फिरता और माँ हाथ न लगती। पुलिस ने उसे ऐसा स्थान बताया कि जहाँ से प्रत्येक महिला का निकलना अनिवार्य-सा ही था, तभी तो उसे माँ मिल सकी।
अतः पुरस्कार पुलिस को ही मिलना चाहिए। इतने श्रम के बावजूद भी पुलिस को पुरस्कार के अतिरिक्त और मिला ही क्या है? बालक को तो माँ मिल गई, माँ को बालक मिल गया, पुलिस को क्या मिला? यह पुरस्कार मिल रहा है, सो आप वह भी नहीं देना चाहते- यह ठीक नहीं है। - इसीप्रकार ज्ञानी गुरुओं के संरक्षण और मार्गदर्शन में ही आत्मा की खोज का पुरुषार्थ प्रारंभ होता है । यदि गुरुओं का संरक्षण न मिले तो