Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 88
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन जा सकता है और मुझसे भी पतले आदमी को खड़ा कर दो तो मोटा भी कहा जा सकता है । ८४ मैं किसी की अपेक्षा भले ही मोटा-पतला या गोरा काला हो सकता हूँ, पर निरपेक्षपने तो जैसा हूँ, वैसा ही हूँ । उसने अपनी माँ की तुलना किसी दूसरे से की ही न थी । अतः वह कैसे बताये कि उसकी माँ कैसी है? उसके निरुत्तर रहने पर पुलिसवाले कहते हैं कि वह तो अपनी माँ को पहिचानता ही नहीं है, पर क्या यह बात सच है? क्या वह बालक अपनी माँ को पहिचानता नहीं है ? पहिचानना अलग बात है और पहिचान को भाषा देना अलग। हो सकता है कि वह अपने भावों को व्यक्त नहीं कर सकता हो, पर पहिचानता ही न हो - यह बात नहीं है: क्योंकि यदि उसकी माँ उसके सामने आ जावे तो वह एक क्षण में पहिचान लेगा । एक बीमा एजेन्ट ने कुछ वर्ष पूर्व उसकी माँ का एक बीमा करवाया था । अतः उसकी डायरी में सब कुछ नोट है कि उसकी लम्बाई कितनी है, वजन कितना है, कमर कितनी है और सीना कितना है । - अत: वह यह सब कुछ बता सकता है, पर उसके सामने वह माँ आ जाये तो पहिचान न पावेगा। यदि पूछा जाय तो डायरी निकाल कर देखेगा और फीता निकाल कर नापने की कोशिश करेगा; पर सब बेकार है; क्योंकि जब उसने नाप लिया था, तब सीना ३६ इंच था और कमर ३२ इंच, पर आज सीना ३२ इंच रह गया होगा और कमर ३६ इंच हो गई होगी। इसीप्रकार शास्त्रों में पढ़कर आत्मा की नाप-जोख करना अलग बात है और आत्मा का अनुभव करके पहिचानना, उसमें अपनापन स्थापित करना अलग बात है ।

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