Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 36
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन एकमात्र त्रिकाली ध्रुव ज्ञानानन्द स्वभावी निजभगवान आत्मा में अपनापन स्थापित होगा। __ अरे भाई! आत्मकल्याण करना है तो, भगवान बनना है तो एकमात्र निज भगवान आत्मा को जानने-पहिचानने में शक्ति लगावो, सक्रिय हो जावोकल्याण के मार्ग पर चलने का एकमात्र यही उपाय है। __ आत्मा की बात शास्त्रों में लिखी है, पर उसका रहस्य ज्ञानियों के हृदय में रहता है। अतः शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ ज्ञानियों का सत्समागम भी आवश्यक है, उनकी वाणी का श्रवण भी आवश्यक है। पढ़ने और सुनने से भी काम नहीं चलेगा; क्योंकि जबतक उसे तर्क की कसौटी पर कसकर उसकी परीक्षा नहीं करेंगे, तबतक वह अपना नहीं बन पावेगा, शास्त्रों और गुरुओं का बनकर रह जावेगा, हम तो मात्र सूचना विभाग के दफ्तर बनकर रह जावेंगे। जिसप्रकार सूचना विभाग के दफ्तर में सर्वप्रकार की सूचनाओं का संग्रह रहता है, पर वह विभाग उनसे अलिप्त ही रहता है; उसीप्रकार हम भी पढ़कर, सुनकर दूसरों को सुना देंगे या नये ग्रन्थ लिख देंगे, पर वह सत्य अपना नहीं बन पावेगा। जब हम उसे तर्क की कसौटी पर कसकर स्वीकार करेंगे तो हमारी उसके प्रति श्रद्धा जागृत होगी। परिणामस्वरूप हम सर्वशक्ति लगाकर उस परमसत्य का अनुभव करना चाहेंगे और समय पर हमें वह अनुभव प्राप्त होगा भी। धर्म के नाम पर मात्र बाह्य प्रवृत्ति में उलझे रहकर समय खराब नहीं करना चाहिए। बाह्य सदाचार और शुभभाव ज्ञानी धर्मात्माओं के जीवन में भी होता है और होना भी चाहिए; पर वह आत्मा का धर्म नहीं है, आत्मा का धर्म तो निज भगवान आत्मा को जानना-पहिचानना और उसमें जमना-रमना ही है। यह बाह्याचार एवं सदाचार के निषेध की बात नहीं है, पर उसमें ही धर्म मानकर सन्तुष्ट हो जाने के निषेध की बात अवश्य है; क्योंकि वहीं सन्तुष्ट हो जाने से आत्मा की खोज का काम शिथिल हो जाता है, समाप्त हो जाता है।

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