________________
४
मैं स्वयं भगवान हूँ
जैनदर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कहता है कि सभी आत्मा स्वयं परमात्मा हैं । स्वभाव से तो सभी परमात्मा हैं ही; यदि अपने को जानें, पहिचानें और अपने में ही जम जायें, रम जायें तो प्रगटरूप से पर्याय में भी परमात्मा बन सकते हैं ।
जब यह कहा जाता है तो लोगों के हृदय में एक प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है कि 'जब सभी परमात्मा हैं' तो 'परमात्मा बन सकते हैं' – इसका क्या अर्थ है ? और यदि 'परमात्मा बन सकते हैं ' यह बात सही है तो फिर 'परमात्मा हैं' – इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता है; क्योंकि बन सकना और होना- दोनों एकसाथ संभव नहीं हैं ।
-
भाई, इसमें असंभव तो कुछ भी नहीं है; पर ऊपर से देखने पर भगवान होने और हो सकने में कुछ विरोधाभास अवश्य प्रतीत होता है, किन्तु गहराई से विचार करने पर सब बात एकदम स्पष्ट हो जाती है ।
एक सेठ था और उसका पाँच वर्ष का एक इकलौता बेटा । बस दो ही प्राणी थे । जब सेठ का अन्तिम समय आ गया तो उसे चिन्ता हुई कि यह छोटा सा बालक इतनी विशाल सम्पत्ति को कैसे संभालेगा ?
-
अतः उसने लगभग सभी सम्पत्ति बेचकर एक करोड़ रुपये इकट्ठे किये और अपने वालक के नाम पर बैंक में बीस वर्ष के लिए सावधि जमायोजना (फिक्स डिपाजिट) के अन्तर्गत जमा करा दिये । सेठ ने इस रहस्य को गुप्त ही रखा, यहाँ तक कि अपने पुत्र को भी नहीं