Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 57
________________ मैं स्वयं भगवान हूँ बताया, मात्र एक अत्यन्त घनिष्ठ मित्र को इस अनुरोध के साथ बताया कि वह उसके पुत्र को यह बात तबतक न बताये, जबतक कि वह पच्चीस वर्ष का न हो जावे। पिता के अचानक स्वर्गवास के बाद वह बालक अनाथ हो गया और कुछ दिनों तक तो बची-खुची सम्पत्ति से आजीविका चलाता रहा, पर अन्त में रिक्शा चलाकर पेट भरने लगा। चौराहे पर खड़े होकर जोर-जोर से आवाज लगाता कि दो रुपये में रेलवे स्टेशन, दो रुपये में रेलवे स्टेशन। __अब मैं आप सबसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि वह रिक्शा चलानेवाला बालक करोड़पति है या नहीं? क्या कहा? नहीं। क्यों? क्योंकि करोड़पति रिक्शा नहीं चलाते और रिक्शा चलानेवाले करोड़पति नहीं हुआ करते। अरे भाई, जब वह व्यक्ति ही करोड़पति नहीं होगा, जिसके करोड़ रुपये बैंक में जमा हैं तो फिर और कौन करोड़पति होगा? ___ पर भाई बात यह है कि उसके करोड़पति होने पर भी हमारा मन उसे करोड़पति मानने को तैयार नहीं होता; क्योंकि रिक्शावाला करोड़पति हो-यह बात हमारे चित्त को सहज स्वीकार नहीं होती। आजतक हमने जिन्हें करोड़पति माना है, उनमें से किसी को भी रिक्शा चलाते नहीं देखा और करोड़पति रिक्शा चलाये-यह हमें अच्छा भी नहीं लगता; क्योंकि हमारा मन ही कुछ इसप्रकार का बन गया है। _ 'कौन करोड़पति है और कौन नहीं है?'- यह जानने के लिए आजतक कोई किसी की तिजोरी के नोट गिनने तो गया नहीं; यदि

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