Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ जीवन-मरण और सुख-दुःख ३९ कर्त्ता-धर्त्ता हर्त्ता स्वयं ही है, अपने भले-बुरे का उत्तरदायी भी पूर्णत: स्वयं - ही है। इस परमसत्य से अपरिचित होने के कारण ही अज्ञानीजन अपने सुखदुःख एवं जीवन-मरण का कर्ता-धर्ता हर्त्ता अन्य जीवों को मानकर अकारण ही उनसे राग-द्वेष किया करते हैं । अज्ञानी के यह राग-द्वेष- मोह परिणाम ही उसके अनन्त दुःखों के मूल कारण हैं। पर में ममत्व एवं कर्तृत्व बुद्धि से उत्पन्न इन मोह-राग-द्वेष परिणामों को जड़मूल से उखाड़ फेंकने वाले इस महासिद्धांत को जगत के सामने रखकर आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने हम सब का महान उपकार किया है; क्योंकि जगतजनों के जीवन का सर्वाधिक समय इसी चिंता और आकुलता - व्याकुलता में जाता है कि कोई हमें मार न डाले, दुःखी न कर दे; मैं पूर्ण सुरक्षित रहूँ, जीवित रहूँ, सुखी रहूँ। अपनी सुरक्षा के उपायों में ही हमारी सर्वाधिक शक्ति लग रही है, बुद्धि लग रही है, श्रम लग रहा है। अधिक क्या कहें - हमारा सम्पूर्ण जीवन ही इसी के लिए समर्पित है, इसी चिन्ता में बीत रहा है। पड़ौसी-पड़ौसी से आतंकित है, आशंकित हैं; एक-दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र रचने में संलग्न हैं, सुरक्षा के नाम पर विनाश की तैयारी में मग्न हैं; निराकुलता और शान्ति किसी के भी जीवन में दिखाई नहीं देती । इस मूढ़ जगत ने अपनी सुरक्षा के नाम पर संसार के विनाश की इतनी सामग्री तैयार कर ली है कि यदि उसका शतांश भी उपयोग में आ जावे तो सम्पूर्ण मानव जाति ही समाप्त हो सकती है। आश्चर्य और मजे की बात तो यह है कि हमने इस मारक क्षमता का विकास सुरक्षा के नाम पर किया है, यह सब अमरता के लिए की गई मृत्यु की ही व्यवस्था है । घटिया माल को बढ़िया पेकिंग में प्रस्तुत करने का अभ्यस्त यह जगत हिंसक कार्यों के लिए भी अहिंसक शब्दावली प्रयोग करने में इतना माहिर हो गया है कि मछलियाँ मारने का काम भी मत्स्य पालन उद्योग के नाम से करता है, कीटाणुनाशक (एन्टी बाइटिक्स) दवाओं को भी जीवन रक्षक दवाइयाँ


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