Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 32
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन २८ की बात बिना सोचे-समझे कर रहे होगे ? क्या वे इतना भी नहीं समझते कि तुम कर सकते हो या नहीं ? भगवान बनने का कार्य तुम कर तो सकते हो, पर सबसे बड़ी बाधा तुम्हारी यही मान्यता है कि हम तो यह कार्य कर ही नहीं सकते। अतः तुम इस मान्यता को छोड़ दो और उत्साह से बात को समझो। अरे भाई, भगवान तुम्हें भगवान बनने की विधि बता रहे हैं और भगवान बनने की प्रेरणा भी दे रहे हैं; - यह हमारा और तुम्हारा महान भाग्य है। चक्रवर्ती की सुन्दरतम कन्या हमारे गले में वरमाला डालने को आवे और हम मुँह फेर लें तो समझ लेना चाहिये कि हमारा भाग्य ही फिर गया है। इसीप्रकार भगवान हमें मुक्ति का मार्ग बतावें और हम मुँह फेर लें तो इससे बड़ा अभाग्य हमारा और क्या होगा ? अतः इन्कार मत करो, उनकी इस सहज सरल हितकारी बात को हम सब नतशिर होकर प्रसन्नता से स्वीकार कर लें - इसमें हम सबका भला है। वीतरागी - सर्वज्ञ भगवान ने हमें भगवान बनने की जो विधि बताई है, वह भी सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र रूप होने से अत्यन्त सरल, सहज एवं स्वाधीन है । पर से भिन्न निज भगवान आत्मा के दर्शन का नाम सम्यग्दर्शन है. पर से भिन्न निज भगवान आत्मा के जानने का नाम सम्यग्ज्ञान है और पर से भिन्न निज आत्मा में जमने - रमने का नाम सम्यक्चारित्र है । सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र - इन तीनों में ही आश्रयभूत तत्त्व एकमात्र निज भगवान आत्मा ही है; अतः सर्वप्रथम उसे जानना अत्यन्त आवश्यक है। हम जरा इस बात पर विचार करें कि हमारे मन्दिरों में जिनेन्द्र भगवान की जो मूर्तियाँ विराजमान हैं, वे किस मुद्रा की हैं ? जन्म से लेकर मोक्ष जाने तक तो उनके जीवन में एक से एक अच्छी अनेक मुद्रायें आई होंगी, पर हमने उनकी ध्यान मुद्रा ही क्यों चुनी ? हमारे घरों में हमने अपनी तस्वीरें भी लगा रखी हैं, पर वे सभी हमारी रागमुद्राओं की तस्वीरें हैं। शादी-विवाह की पति-पत्नी की जोड़े से सजीसंवरी तस्वीरें ही अधिकांश घरों में लटकी मिलेंगी । तीर्थंकरों की भी शादियाँ

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