________________
णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन मुक्तिरूपी कन्या उनका वरण नहीं करती है, जो उसका ध्यान धरते हैं; किन्तु उनका ही वरण करती है, जो निज भगवान आत्मा का ध्यान धरते हैं। वह आत्मा पर रीझनेवालों पर ही रीझती है।
तात्पर्य यह है कि मुक्ति, मुक्ति का ध्यान धरनेवालों को प्राप्त नहीं होती, त्रिकालीध्रुव निज भगवान आत्मा का ध्यान धरनेवालों को ही प्राप्त होती है। इसीलिए इन गाथाओं में निज भगवान आत्मा की शरण में जाने की बात कही गई है। ___ एक युवक जीवनसाथी बनाने के लिए एक युवती को देखने गया। दोनों ही अत्यन्त सुन्दर और सब प्रकार से सुयोग्य थे। एक-दूसरे को देखकर दोनों ही एक-दूसरे पर मोहित हो गये। यद्यपि दोनों ने ही एक-दूसरे को पसन्द कर लिया था, पर कुछ देर तक कोई कुछ नहीं बोला।
भारतीय युवतियाँ तो सहज संकोची होती ही हैं। अतः पहले लड़की के बोलने का तो कोई सवाल ही नहीं था, पर युवक भी उसकी सुन्दरता देखकर स्तब्ध-सा रह गया। वह उस युवती पर आवश्यकता से अधिक रीझ गया था। अतः उसके हृदय में आशंकाओं के बादल मंडराने लगे। __वह सोचने लगा - यह तो बहुत ही सुन्दर है, मुझे तो यह पूर्णत: पसन्द आ गई है, पर कहीं ऐसा न हो जाए कि यह मुझे नापसन्द कर दे। यदि इसने मुझे नापसन्द कर दिया तो मेरा तो जीना ही मुश्किल हो जावेगा। ___ वह इस भय से आक्रान्त हो गया कि कहीं यह मुझे अस्वीकार न कर दे। हीन भावना से ग्रस्त वह उससे और कोई बात न कर व्याकुल होकर यह पूछने लगा
“मैं तुम्हें पसन्द आया या नहीं ?"
स्वभाव से ही संकोची भारतीय ललना कुछ भी न बोल सकी तो उसकी आशंका और भी प्रबल हो उठी; अत: वह और भी अधिक दीन हो गया और अत्यन्त मायूसी से कहने लगा -