Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन पर एक बात तो निश्चित ही है कि आत्मा की उपासना तो आत्मसन्मुख होने में ही है, आत्मज्ञान में ही है, आत्मध्यान में ही है, अपने में अपनापन स्थापित करने में ही है। इन्हीं का नाम निश्चयरत्नत्रय है - निश्चय - सम्यग्दर्शन, निश्चय - सम्यग्ज्ञान और निश्चय - सम्यक्चारित्र है। तात्पर्य यह है कि निश्चयसम्यक्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की प्राप्ति ही निज भगवान आत्मा की उपासना है, निज भगवान आत्मा की आराधना है, निज भगवान आत्मा की साधना है, निज भगवान आत्मा की शरण में जाना है। इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि निरन्तर आत्म ध्यान की दशा ही साध्यभाव की उपासना है और कभी-कभी आत्मध्यान की दशा का होना, साधकभाव की उपासना है । आत्मा के कल्याण के इच्छुक पुरुषों को, चाहे वे साध्यभाव से उपासना करें या साधकभाव से उपासना करें, पर उपासना तो नित्य निज भगवान आत्मा की ही करना चाहिए। १६ यह निज भगवान आत्मा की उपासना ही आत्मा की शरण में जाना है। उक्त गाथा में आचार्य कुन्दकुन्द ने इसी की भावना भायी है। उक्त गाथाएँ मोक्षपाहुड़ की १०४ एवं १०५वीं गाथाएँ हैं और उसके ठीक पहले १०३वीं गाथा में आचार्य कहते हैं - णविएहिं जं णविजई झाइज्ज झाइएहिं अणवरयं । थुत्वंतेहिं थुणिजई देहत्थं कि पि तं मुणह || हे भव्यजीवो ! जिनको सारी दुनिया नमस्कार करती है, वे भी जिनको नमस्कार करें; जिनकी सारी दुनिया स्तुति करती है, वे भी जिनकी स्तुति करें एवं जिनका सारी दुनिया ध्यान करती है, वे भी जिनका ध्यान करें; - ऐसे इस देहदेवल में विराजमान भगवान आत्मा को जानो । " वन्दनीय पुरुषों द्वारा भी वन्दनीय, स्तुति योग्य पुरुषों द्वारा भी स्तुत्य एवं जगत के द्वारा ध्येय पुरुषों का भी ध्येय यह भगवान आत्मा ही शरण में जाने योग्य है - यह जानकर ही आत्मा की शरण में जाने की बात कही गई है।

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