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णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन
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पंचपरमेष्ठी भगवन्तों ने भी जिसकी शरण ग्रहण की है; उस भगवान आत्मा को ही जानने की प्रेरणा दी गई है इस गाथा में । उसे ही जानने पहिचानने का आदेश दिया है आचार्य भगवन्त ने और उसी में जम जाने, रम जाने का उपदेश आता है तीर्थंकरों की दिव्यध्वनि में ।
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यह बात द्वादशांगरूप दिव्यध्वनि का सार है, यही बात लाख बात की बात है, और यही कोटि ग्रन्थों का सार है।
जैसाकि निम्नांकित पंक्तियों में कहा गया है -
लाख बात की बात यहै निश्चय उर लाओ । तोरि सकल जग दन्द - फन्द निज आतम ध्याओ ।। कोटि ग्रंथ को सार यही है ये ही जिनवाणी उचरो है।
दौल ध्याय अपने आतम को मुक्ति रमा तोय वैग वरै है । ' उक्त पंक्तियों में अत्यन्त स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि अधिक बात करने से क्या लाभ है, लाख बात की बात तो यह है कि जगत के दन्द-फन्द प्रपंचों को छोड़कर एक निज भगवान आत्मा का ही ध्यान धरो ।
उक्त पंक्ति में प्रकारान्तर से यह भी कह दिया गया है कि एक आत्मा के ध्यान के अतिरिक्त जो भी है, वह सभी दन्द - फन्द ही है।
करोड़ ग्रंथों का सार भी यही है और सम्पूर्ण जिनवाणी में भी यही आया है, सम्पूर्ण जिनागम में भी यही कहा गया है कि अपने आत्मा का ध्यान धरो । यदि तुम ऐसा कर सके तो मुक्तिरूपी कन्या अतिशीघ्र ही तुम्हारा वरण करेगी, तुम्हारे गले में वरमाला डाल देगी।
मुक्तिरूपी कन्या प्राप्त करने के लिए तुम्हें मुक्तिरूपी कन्या का ध्यान धरने की आवश्यकता नहीं है, तुम तो स्वयं का ध्यान धरो । निज भगवान आत्मा को ही ज्ञान का ज्ञेय बनाओ, ध्यान का ध्येय बनाओ; मुक्तिरूपी कन्या स्वयं उपस्थित होकर तुम्हारा वरण करेगी, तुम्हारे गले में वरमाला डालेगी।
१. पंडित दौलतराम : छहढाला, चौधी ढाल, छन्द ९
२. पंडित दौलतराम : भजन की पंक्ति