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णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन
"क्या मैं तुम्हें सचमुच ही पसन्द नहीं आया ?"
उसके बार-बार पूछने पर भी वह लड़की हाँ या ना तो न कह सकी, पर नीची निगाह किए हुए ही धीरे से बोली
"क्या मैं आपको पसन्द आ गई हूँ?"
"हाँ, हाँ; एकदम। तुम तो देवांगनाओं से भी सुन्दर हो; पर मैं तुम्हें पसन्द आया या नहीं ?" - एकदम अस्त-व्यस्त-सा युवक बोला, पर लड़की नीची निगाह किए मात्र मुस्कुरा कर ही रह गई।
सुसभ्य एवं सुसंस्कृत भारतीय कन्याएँ अपनी सहमति इसप्रकार ही व्यक्त करती हैं। मौनं सम्मति लक्षणम् - मौन सम्मति का ही लक्षण है- इस बात को जाननेवाले विवेक के धनी तो सब समझ ही जाते हैं, पर आकुल-व्याकुल वह युवक कुछ भी न समझ सका; अपितु उसकी आशंका और भी अधिक प्रबल हो उठी। अत: घबड़ाकर वह उसके हाथ-पैर जोड़ने लगा और कहने लगा कि तुम मुझे अस्वीकार न कर देना, अन्यथा मेरा जीना ही मुश्किल हो जावेगा।
उसकी यह व्याकुलता देखकर कन्या उससे विरक्त हो गई; क्योंकि उसे तो ऐसा पति चाहिए था कि जिसकी वह विनय करे, पर यहाँ तो उल्टा ही होने लगा था।
जिसप्रकार ऐसे हीन व्यक्तित्व के धनी पुरुषों को भारतीय ललनाएँ पसन्द नहीं करती; उसीप्रकार मुक्ति पर्याय पर भी इस सीमा तक रीझनेवालों को मुक्ति नहीं मिलती।
जिसप्रकार अपने पौरुष से गौरवान्वित पुरुषों के गले में ही सुयोग्य कन्यायें वरमाला डालती हैं; उसीप्रकार भगवान स्वरूप अपने आत्मा पर रीझे पुरुषों के गले में ही मुक्तिरूपी कन्या वरमाला डालती है। ___जो व्यक्ति मोक्ष अर्थात् सिद्धदशा की सुखकरता-सुन्दरता देखकर-जानकर उसकी महिमा से इतने आक्रान्त हो जाते हैं कि उन्हें अपना स्वभाव ही तुच्छ