Book Title: Munidwaya Abhinandan Granth
Author(s): Rameshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Ramesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP

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Page 13
________________ ( १० ) याद करें, किन्तु विवेकानुगामी प्रबुद्ध एवं अध्ययनशील समाज स्वयं उनका सम्मान करने के लिए सौ-सौ हाथ आगे बढ़ाता है । अपने गुरु जनों के प्रति श्रद्धानत होकर अपनी समुज्ज्वल संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में अपने को भाग्यशाली मानता है । वि.सं. १९७४ में हमारा वर्षावास जालना (महाराष्ट्र ) था । उन दिनों मुझे अपने अन्तेवासी श्री सुरेश मुनि जी शास्त्री, श्री नरेन्द्र मुनि जी, कवि श्री विजय मुनि जी, तपस्वी श्री अभयमुनि जी एवं तरुण तपस्वी श्री प्रकाश मुनि जी से प्रेरणा मिलती रही कि - " मुनि श्री प्रताप अभिनन्दन ग्रंथ'' एवं 'भगवान महावीर के पावन प्रसंग' का प्रकाशन एवं विमोचन कार्य शानदार ढंग से पूर्ण हो चुका है । अब आप मुनि द्वय ( उपाध्याय श्री कस्तूरचन्द जी महाराज एवं प्रवर्तक श्री हीरालाल जी महाराज) के अभिनन्दन ग्रंथ का लेखन कार्य का सूत्रपात करें। इस समय परिस्थितियाँ आपके अनुकूल है। सफलता अच्छी मिलेगी । यद्यपि मुनियों का परामर्श समयोचित था, फिर भी मैं उसे सुनकर उपेक्षा करता रहा । कारण कि अभिनन्दन ग्रंथ जैसा कार्य कोई सरल नहीं था । उस समय मेरे पास तत्सम्बन्धी सामग्री का भी काफी अभाव था और दोनों महामुनि श्री काफी दूर विराज रहे थे, उनसे कुछ जानकारी करें तो कैसे करें ? इस कारण साथी मुनियों की बात टालता रहा । वर्षावास पूरा हुआ और आन्ध्र प्रदेश की ओर गुरु प्रवर श्री प्रतापमल जी महाराज आदि मुनि मण्डल के चरण बढ़े । मार्ग बीच में भी मुनियों की वही धुन मेरे कानों में गूँजती रही बस, एक दिन मेरा अन्तर्मन बोल उठा – पुरुषार्थी के लिए क्या कठिन है, प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी अनुकूल होंगी । गुरुदेव का शुभाशीर्वाद प्राप्त कर मैंने इस महत् कार्य का सूत्रपात कर दिया । मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि बहुत ही शान्त वातावरण की गोद में मुनियों का यह महान संकल्प पूरा हुआ है। इस मंगल कार्य की सफलता में कई पवित्र आत्माओं का सराहनीय सहयोग रहा है | प्रेरक मण्डल का भी मैं आभारी हूँ, साथ ही साथ सम्पादक मण्डल में कार्यरत स्नेही साथी सफल वक्ता श्री अजीत मुनि जी महाराज का सर्वाधिक सहयोग रहा है। जिनकी ओर से साहित्यिक सामग्री समय-समय पर मुझे मिलती रही है । आदेशानुसार पूरे उत्साह के साथ उन्होंने उत्तरSarfa निभाया है। शुद्ध प्रेस लिपिकार श्री नरेन्द्र मुनि जी एवं कवि श्री विजय मुनि जी की सेवाओं का मूल्य मेरी लेखनी आँक नहीं सकती है । इन होनहार मुनियों का कृति में सराहनीय रहा है। तभी मैं चन्द कृतियाँ आपके (पाठक) समक्ष रख सहयोग मेरी प्रत्येक पाया हूँ । अन्य जितने भी विद्वद् मुनि - महासती की ओर से, श्री संघों की एवं विद्वानों की ओर से लेख, कविताएँ - संस्मरण एवं श्रद्धा भक्ति भरे उद्गार प्राप्त हुए और ग्रंथ को अति सुन्दर पठनीय बनाने में सहयोग दिया है साथ ही साहित्यसेवी श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' का सेवाकार्य भी स्मरणीय है । जिनकी देख-रेख में ग्रंथ निखरा है । इन सभी प्रबुद्ध जीवी वर्ग को हृदय से मैं साधुवाद देता हूँ । किसी भी महापुरुष के जीवन का सर्वांश रूप से दर्शन कर लेना सहज नहीं है । उनके ऊर्ध्वमुखी जीवन को देखने के लिए दृष्टि की भी उतनी ही व्यापकता अपेक्षित है । मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं कि — इस ग्रंथ की पूर्णता मैं अपनी नन्हीं बुद्धि से नहीं कर पाया हूँ। मैं जानता हूँ कि - किसी भी साधक के जीवन का अध्याय 'इति' रहित है, और उसमें केवल 'अथ' ही होता है । — मुनि रमेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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