________________
(2)
है। पर्युपासना, तत्व चर्चा एवं व्याख्यानश्रवण करने का कई बार स्वर्णिम अवसर मुझे मिला है । यथा प्रज्ञा मुनि द्वय के सम्बन्ध में मैंने जो कुछ समझा है, जो कुछ पाया है, उन्हीं निष्कर्षो की संकलित चन्द प्रशस्तियों की पंक्तियाँ यहाँ दी गई हैं । जिनको इस अभिनन्दन ग्रन्थ की एक-एक पंक्ति बताने में सक्षम है।
साधक के पार्थिव देह का चित्रण प्रस्तुत करना इस साधन सम्पन्न युग में कोई कठिन कार्य नहीं रहा। क्योंकि बाह्यदेह की तस्वीर साकार सीमित एवं पीद्गलिक है। किन्तु साधक का आन्तरिक जीवन रूपातीत, असीम एवं जन-जन जीवन तक व्याप्त रहता है । उस रूपातीत जीवन के विमल व्यक्तित्व को जनता के समक्ष रखना सचमुच ही दुरूहता युक्त कार्य रहा है। कहा भी हैं- "चिन्त्यो न हन्त महतां यदि वा प्रभाव: ।" अर्थात् महा मनस्वियों का प्रभाव स्थूल बुद्धि वालों के चिन्तन में कैसे आ सकता है ? फिर भी जो कुछ भी इस ग्रंथ में लिखा गया है । उसमें श्रद्धा और भक्ति की प्रमुखता रही है । यह ग्रंथ मुख्यतः छह खण्डों में विभक्त है ।
प्रथम खण्ड
व्यक्तित्व दर्शन एवं जीवन दर्शन
इसमें ज्योतिर्विद स्थविरपद विभूषित श्रद्धेय श्री कस्तूरचन्द जी महाराज के व्यापक व्यक्तित्व का दर्शन विभिन्न मनीषी लेखकों द्वारा कराया गया हैं ।
जैनागम तत्त्व विशारद प्रवर्तक श्री हीरालाल जी महाराज के बहु आयामी जीवन के विविध पक्षों को उजागर करने वाले अनेक लेख इसी खण्ड के दूसरे भाग में हैं।
द्वितीय खण्ड
इस खण्ड में अनेक आदरणीय मुनियों, महासतियों, विद्वानों, राजनेताओं, श्री संघों एवं भक्त श्रावकों द्वारा मुनिद्रय के प्रति व्यक्त शुभकामना एवं श्रद्धा उद्गार संकलित है ।
तृतीय खण्ड
मातृभूमि मालव के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक गौरव की उज्ज्वल गाया है। चतुर्थखण्ड
धर्म-दर्शन संस्कृति एवं इतिहास आदि विषयों से सम्बन्धित विद्वद वर्ग के अनेक तात्विक महत्वपूर्ण लेख संकलित किये हैं ।
पंचम खण्ड
इसमें जैन ज्योतिष सम्बन्धी लेख है
छठा खण्ड
इसमें उपाध्याय श्री कस्तूरचन्द जी म० के अज्ञानुवर्ती संत-सतियों का सचित्र परिचय है। अभिनन्दन ग्रंथ सुसाहित्य भण्डार की अनुपम थाती है । अमुक-अमुक युग में जो-जो यशस्वीतेजस्वी - विरल विभूतियाँ हुई अथवा विद्यमान है, उनका आद्योपान्त जीवन-दर्शन अभिनन्दन ग्रंथों में लिखा रहता है। उस जीवन वृत्त से प्रेरणा पाकर असंख्य भुली भटकी एवं भोग-विलासी जनता को पुनः संभलने का, सावधान होने का स्वर्णिमावसर मिलता है।
लाइट (Light) स्तम्भ की भाँति अभिनन्दन ग्रंथ मार्ग दर्शक एवं प्रेरणा का पुंज माना है । यह साधक वृन्द नहीं चाहते हैं कि - युगानुकूल वर्तमान कालीन समाज हमारे साधक जीवन का एवं साहित्यिक सेवाओं का गुणगान करें, हमारी जीवनियाँ लिपिबद्ध करें एवं हमें भावी पीढ़ी
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org