Book Title: Mandan Granth Sangraha Part 01
Author(s): Mandan Mantri
Publisher: Laherchand Bhogilal Shah

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अपि च www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीहेमचन्द्राचायेग्रन्थावली. विकचकमललीलाशालिरम्याननश्रीर्विमलजलसमानमोल्लसच्चित्तवृत्तिः । सर इव नरपालः पालयन्बालमेघ प्रसवदिवसमासीदुन्मुखस्तन्मुखस्य || २ || , ( १५ ) अपि च अर्थेन किं दुर्मदमेदुरेण किं विद्यया मत्सर निन्द्यया च । स्यादङ्गजः कल्मषभङ्गजन्मा वदन्निदं प्राप मुदं महीपः ||३|| तनयजननकाले स्तोक एवावशिष्टे वदनमभवदस्य प्रोद्यदुत्तालभासि । उदयसमयरुडे वासरेशप्रकाशे कमलमित्र विशालं किञ्चिदुद्भिन्नकोशम् ॥ ४ ॥ किच- अपांसुलमृदुलतालवृन्ता निलसमानपवमानशोभमाने, मन्दारकुसुमामन्द तर मोदस्य न्दिमु दिनहु दिरधारासम्पातचारुसम्पत्तौ प्रबलमङ्गलतूर्यनिनादानन्दित दिवौकसि, पुण्डरीक पटलपाण्डुरवर्णप्रसन्नदशदिशि, प्रोल्लसितजनवदनकमले, विमलोद्भासिभास्करमहसि दुर्द्धरभूभारधरणव्याकुलाङ्ग समुच्छ्वसितनागकुले, दुर्नयशासनकम्पमानपवमानहताश्वत्थदलली लोल्लसितनिश्चलधरणिमण्डले, आखण्डलमेरिताखिलजनाद लोपिदिव्यतूर्यध्वनिपूर्यमाणदश दिङ्मुखे, चन्दनरसामन्द सेक विराजितपौराङ्गणे, आनन्दसम्भ्रमस विभ्रमनगरनायकागणे, प्रतिमन्दिरर चितोचि - तमणिमयतोरणे, दरिद्रमुद्रयाचक लोकशोकहरजे, प्रतिचत्वरं त्वरितमङ्गलमालिका विकासिपुण्ययुवतिजने, कुसुमभरनमितकलितवन्ध्यवने, समुज्जृम्भितमधुरगन्धर्वललितरागे, घनानन्दिल त्रिभुवने, शुभदिने, शिवादेवी सुतमजनयत्, नयनसुखदेदीप्यमानशरीरतेजःपुररञ्जितधरणिमण्डलम्, कुतूहलेन बालवेषधरं कनकधराधरमित्र । For Private and Personal Use Only

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