Book Title: Mandan Granth Sangraha Part 01
Author(s): Mandan Mantri
Publisher: Laherchand Bhogilal Shah

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२) श्रीचम्पूमण्डनम्. अपि चप्रिय ! शून्यमिदं त्वया विना यदुराजन्यमवेक्ष्यते जनः । जलसेकविवर्जितं स्थले कमलानामिव वृन्दमाकुलम् ॥४॥ अपि चउपलादपि योषितः परं कठिना इत्यवगम्यतेऽधुना । तव निर्गमशोकयन्त्रिकानिहतं मे हृदयं न भिद्यते ॥५॥ इति बहु विलपन्ती राजिमत्याकुलाङ्गी नयनयुगलनीरैः पङ्किलीभूतभूमिः । अगमदनु च नेमि तं स्मरन्ती च चित्ते · द्युतिरिव नलिनीशं प्रस्थितं पश्चिमायाम् ॥६॥ प्रचण्डमार्तण्डकरातपतप्तशर्करिलज्वलदिलातलजनितस्फोटदूषिताभ्यां पद्भयां स्खलन्ती राजिमती पृष्टत आयान्तीमालोक्य कूर्मकवचकठिनहृदयो नेमिर्मुहुः पलायनपरो बभूव ।। अन्यच्च-तस्मिन्वने विशीर्णद्रमपर्णराशिक्लिप्तमार्गप्रदेशे अज्ञातमार्गा मुक्तकेशी सा दुःखिता टिट्टीभीव पटुना शद्वेन पुनर्विललाप कम्पमाना शोकस्फुटितहृदया। अपि च चलानिलान्दोलितपल्लवं त्यजनिजं तारतुषारवाष्पतः तदुःखतोऽतोषधरं रुरोद किं निशम्य परिदेवनं वनम् ॥१॥ अपि च रैवतकगिरेरुपान्तं प्राप्तो नेमिस्ततो ददर्श, हृदयामरकं वनम्, चश्चरीकचरणदलितदलकनकचम्पकबहुलमुकुलबहुलसमुच्छलितरजःपुञ्जपिञ्जरिततरुवलयमलयपवनमन्दमन्दान्दोलितमाकन्दराजिमञ्जरीपल्लव गल दमल मकरन्द लव कृता स्वाद मुदितमेदुरभ्रमदलसविलसद्भुमरमधुरझाङ्कारदुःखविकारहारि, कुसुमभरामितनमिततरूवरच्छादित धरातल समासीनकिन्नर गणवीणा द For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175