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प्रकाशकीय राजस्थान जैन सभा द्वारा प्रकाशित महावीर जयन्ती स्मारिका का तीसरा अंक पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुये हमें अत्यन्त हर्ष अनुभव हो रहा है । गत दो वर्षों से प्रकाशित महावीर जयन्ती स्मारिका का पाठकों ने जो स्वागत किया है तथा विद्वानों ने उसकी जो सराहना की है उसी से प्रेरित होकर हम स्मारिका का यह तीसरा अङ्क प्रस्तुत कर रहे हैं । हमें विश्वास है, पाठकों ने जिस सहृदयता से दोनों अङ्कों को अपनाया है उसी सहृदयता से इस तृतीय अङ्क को भी अपनायेंगे।
गत दो वर्षों में प्रकाशित स्मारिकामों के अनुरूप यह स्मारिका नहीं बन पाई है, इसका हमें खेद है। इसका मुख्य कारण धनाभाव रहा है । स्मारिका के प्रकाशन तथा राजस्थान जैन सभा के अन्य कार्यक्रमों में जैन समाज का जो सहयोग प्राप्त होना चाहिये वह नहीं मिल पा रहा है । अपने अथक प्रयासों के बावजूद भी हम इस प्रकाशन के लिये वांछित धन संग्रह नहीं कर पा रहे हैं । सभा के सामने सदा ही आर्थिक संकट रहा है । यदि अार्थिक कष्ट की समस्या न हो तो इस प्रकार के अनेक प्रकाशनों की योजना बनाई जा सकती है तथा इस स्मारिका को भी अधिक सुन्दर एवं उपयोगी बनाया जा सकता है ।
स्मारिका के प्रकाशन में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जिन महानुभावों ने सहयोग प्रदान किया है उनके हम आभारी हैं। हम विशेष तौर पर उन सभी विज्ञापन दाताओं के भी कृतज्ञ हैं जिनकी सहायता के फलस्वरूप स्मारिका का प्रकाशन सम्भव हो सका है।
हम सम्पादक मण्डल के अध्यक्ष पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ एवं सम्पादक मण्डल के सदस्य सर्व श्री राजमल संघो एवं डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल के भी अत्यधिक प्राभारी हैं जिनके अथक प्रयास से इस स्मारिका का प्रकाशन सम्भव हो सका है। हम स्मारिका के मुद्रक अजन्ता प्रिन्टर्स के श्री सौभागमल जैन को भी धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते जिन्होंने इसके समय पर प्रकाशन में पूर्ण सहयोग दिया है।
हमें आशा है, पाठक गणों तथा जैन समाज के धनी मानी सज्जनों से भविष्य में अधिक सहयोग प्राप्त होगा ताकि इस स्मारिका को हम अधिक विकसित रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर सकें।
रतनलाल छाबड़ा जयपुर
मन्त्री २४-४-६४
राजस्थान जैन सभा
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