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महावीर का अनेकांतिक अहिंसा दर्शन
• 'युगल' जैन
एम.ए., साहित्य रत्न कोटा
जीवन के निर्माण में अहिंसा को महती उपयोगिता को विस्मृत करके अाज उसे केवल 'जीयो और जीने दो' को संकुचित सीमानों में प्रतिबद्ध कर दिया गया है। इससे जन-जीवन में अहिंसा विकृत ही नहीं हुई है वरन् उसका स्वरूप ही जीवन और जगत से लुप्त सा हो गया है। इसका फल यह हुआ कि आज व्यक्ति को अपने जीवन के लिए अहिंसा की कोई उपयोगिता नहीं रही। उसका उपयोग केवल दूसरे प्राणी को बचाने को अनधिकृत तथा विफल प्रयास तक ही सीमित रह गया है।
अहिंसा जीवन का शोधक तत्व है। अहिंसा का इससे जनजीवन में अहिंसा विकृत ही नहीं हुई है वरन्
सीधा सबंध आत्मा से है। वह प्रात्मा का ही उसका स्वरूप ही जीवन और जगत से लुप्त-सा हो गया निर्विकार कर्म है । प्रात्मा ही उसका साधकतम कारण है । इसका फल यह हुप्रा कि आज व्यक्ति को अपने है। प्रात्मा ही उसकी सुरम्य जन्म-स्थली है और अहिंसा जीवन के लिये अहिंसा की कोई उपयोगिता नहीं रहीं। का संपूर्ण क्रिया-कलाप आत्मा के लिये ही होता है। उसका उपयोग केबल दूसरे प्राणी को बचाने का अनधिउसके फलका उपभोक्ता भी आत्मा ही है। वह आत्मा कृत तथा विफल प्रयास तक ही सीमित रह गया है। के अंतरंग बंधनों को तोड़कर जीवन के विकास का पथ कोई प्राणी बच गया है उसका संपूर्ण श्रेय अहंकार के प्रशस्त करती है । वास्तव में बहिर्जगत से उसका कोई शिखर पर चढ़ा प्राज का अहिंसक अपने ऊपर लेकर संबंध नहीं।
पुण्य-संचय से मन में परम संतुष्ट होता हा स्वर्ग के ...अहिंसा के साथ महावीर का नाम छाया और शरीर कृत्रिम सुखमय जीवन की कल्पनाओं से मन ही मन की भांति जुड़ा हुप्रा है । वास्तव में महावीर ने मौलिक पुलकित होता रहता है, दूसरे प्राणी को बचाने के वस्तु स्वरूप के आधार पर अहिंसा का जो अनेकांतिक विफल प्रयास मूलक अहंकार गभित अहिंसा का यह रूप स्वरूप जगत् के समक्ष रक्खा, जगत् को उनकी वह देन महावीर के दर्शन में हिंसा ही घोषित किया गया है। .. प्रदर्भत एवं अद्वितीय है। महावीर का हिसा दर्शन अहिंसा के मूलाधार प्रात्मा को यदि हम भारतीय एक-सर्वागीण जीवन-दर्शन है । वह जीवन को जहां से
दर्शनों के स्तर पर परीक्षण करके देखें तो हमें विदित उठाता है. उसे विकास के चरम बिंदु पर लेजाकर रख
होगा कि लगभग सभी भारतीय दर्शनों ने एक स्वर से देता है ।
आत्मा की अमरता को स्वीकार किया है। वहां हमें जीवन के निर्माण में अहिंसा की महती उपयोगिता सुनने को मिलता है कि प्रात्मा प्रजर है, अमर है, वह विस्मत करके आज उसे केवल 'जीरो और जीने दो' शस्त्रों से नहीं छिदता, अग्नि में नहीं जलता इत्यादि। की संकुचित सीमानों में प्रतिबद्ध कर दिया गया है। एक अोर से हमें प्रात्मा की ममरता के ये गीत सुनाई
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