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हैं। उनमें प्रतिपादिा व्यवस्था में ' न नु न च' के लिए वीभत्स स्थिति बज्यान के कारण बौद्धधर्म के लिए पदा कोई गुंजाइश नहीं है । उसका मन्तव्य एकान्तवादी होगई । बज्यान के कारण बौद्ध धर्म में खान-पान तथा है। उसमें कहा गया है कि 'नान्यःपंथा विद्यते अयनाय' प्राचार-विचार की सब मर्यादानों का अन्त कर दिया अर्थात् मृत्युरूपी दुःखसागर से पार होने के लिए उसको गया । अहिंसा पर आधारित बौद्ध धर्म में अहिंसा का जानने के सिवाय दुसरा कोई मार्ग नहीं है । ऐसा प्रतीत दिवाला पिट गया और संयम का नामोनिशां भी बाकी होता हैं, जैसे कि मानव संसाररूपी नाटक में केवल न बचा । बाममार्ग वैदिक धर्म तथा वैदिक संस्कृति को अपना पार्ट अदा करने पाता है । सारा रंगमंच उसको ले डूबा और ब्रजयान ने बौद्ध धर्म का दिवाला पोट पहले से ही तैयार मिलता है। यद्यपि गीता भगवान दिया। यह कितनी शोचनीय स्थिति है कि जो बौद्ध श्रीकृष्ण ने 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' का प्रतिपादन किया धर्म महात्माबुद्ध की घोर तपस्या के फलस्वरूप फलाहै; परन्तु प्रतीत यह होता है कि वस्तुतः उसको उतना फूला था और जो सम्राट अशोक तथा सम्राट कनिष्क भी अधिकार नहीं है । विकृत एवं जन्मपरक वर्णव्यवस्था का प्रश्रय पाकर देश-विदेशों में चारों ओर फैला था, में तो निश्चितरूप से उसको इस अधिकार से बिल्कुल वह सम्राट हर्ष के समय में संयम तथा अहिंसा से वंचित कर दिया गया है । जन्म की आकस्मिक घटना विचलित या विमुख होकर मुख्यतः जादू टोने का मंत्रयान के बाद उसके अपने श्रम का कुछ भी महत्त्व नहीं बन गया और उसके विशाल विहार सेना के अड्डे बन रहता । धर्म के विधि-विधान का पालन या पाचरण गए। उसने सैनिक धर्म का रूप धारण कर लिया । भी कमीशन एजेंसी का विषय बन गया है। दान दक्षिणा इस कारण भी वह बज यान को झोंके को झेल न को सामर्थ्य की तुलना पर धार्मिक विधि-विधान का सका। भारत में वह नामाशेष होगया । वेवल अशोक प्रनुष्ठान तोला जासकता है और मेरे धर्माचरण का के नष्ट-भ्रष्ट शिलालेखों में और इतिहास के जीर्ण-शीर्ण सारा लाभ वह उठा सकता है, जो मुझे भारी भरकम पत्रों में उसका नाम रह गया। उसके विशाल बिहार, दान दक्षिणा दे सकता है । धर्म के ठेकेदारों या दलालों स्तूप और गुफायें आदि पुरातत्व विभाग के विषय बनकर के हाथों में सारा धार्मिक विधि-विधान एक खिलोना रह गए । अांधी की तरह वह चारों ओर फैला और बन गया है। ऐसी स्थिति में प्राडम्बर प्रपंच और तूफान की तरह शान्त होगया। विकृतिजन्य स्थिति का दिखावे आदि से धार्मिक विधि विधान को अलग नहीं दुष्परिणाम उसको प्रकृति के दण्ड की तरह भोगने को रखा जासकता । एक विकार अनेक विकारों को जन्म बाध्य होना पड़ गया । प्रकृति बड़ी कठोर है। वह देने का कारण बन जाता है और शतमुखी पतन अनिवार्य किसी को भी क्षमा नहीं करती। हो जाता है।
जैन धर्म की स्थिति श्रमण संस्कृति - बौद्ध धर्म - दूसरी और श्रमण संस्कृति भी विकृति से सर्वथा इसी पृष्ठभूमि में जैन धर्म की स्थिति पर कुछ सुरक्षित नहीं रह सकी और उसकी एक मुख्य शाखा विचार किया जाना चाहिए । इतिहास के प्रध्ययनशीन बौद्ध धर्म के लिए तो उसमें पैदा हुई विकृति उसके विद्यार्थी से यह छिपा नहीं है कि जैनधर्म बाममार्ग तया गले की फांसी बन गई । धर्मग्लानि की स्थिति का बजयान सरीखे विकारों से प्रायः सर्वथा सुरक्षित रहा सम्बन्ध किसी धर्मविशेष के साथ नहीं है। प्रत्युत वह है । उसमें विकृतिजन्य वैसी स्थिति प्रायः पैदा नहीं सभी धर्मों से सम्बन्धित है और सभी में धर्मग्लानि की हुई और उसका दुष्परिणाम उसको भोगना नहीं पडा। स्थिति पैदा होना सम्भव है। बाममार्ग के कारण वैदिक मानव जीवन की प्रयोगशाला में जो सांस्कृतिक अनसन्धान कर्म अथवा वैदिक संस्कृति के लिए विकृतिजन्य जो सदियों तक निरन्तर होते रहे, उनका निचोड़ जैनधर्म कहा स्थिति पैदा हुई. उससे भी कहीं अधिक भयानक तथा जासकता है । वह किसी व्यक्ति विशेष द्वारा प्रतिपादित
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