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इस उपयुक्त विवेचन से हम यह भली भांति जान कि बौद्ध दर्शन का नैरात्म्यवाद भी यत्किञ्चित रूप से सकते हैं कि भारतीय दर्शनकारों में आस्था के अस्तित्व व्यवहारतः ही सही, चेतनास्तित्व को स्वीकार करता है के विषय में कितना गहन तथा सूक्ष्म विचार प्रस्तुत चाहे वह क्षणिक ही हो । जैन दर्शन का प्रात्म विवेचन किया गया है। वेदान्त, सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग, जैन अत्यन्त प्रौढ़ है। उसका द्रव्य स्वरूप बड़ा विलक्षण तथा बौद्ध दर्शनों ने अपने अपने ढंग से प्रात्मा की सत्ता तथा बहुतर्क सम्मत लगता है । जगत् का प्रत्येक पदार्थ तथा प्रामाणिकता को स्वीकार करके और विस्तृत उत्पाद व्यय तथा धौव्य युक्त है। वस्तुत: यह मान्यता विवेचन करके भारतीय दर्शन को विस्तार प्रदान दर्शन में एक विशेष महत्व रखती है । वेदान्त द्वारा किया है।
स्वीकृत आत्मा की स्वयं सिद्धता और सांख्य स्वीकृत इस समस्त विवेचन का यदि तुलनात्मक अध्ययन पुरुष का स्वरूप भी बड़ा अद्भुत प्रतीत होता है। न्याय किया जाय तो बड़े रोचक परिणाम निकल सकते हैं और वैशेषिक द्वारा सुख-दुःख ग्रादि के आधार पर प्रात्मा का संभवतः अन्त में सभी दर्शनों के मत एक स्थान पर अनुमान तके साध्य लगता है। जो भी हो, उपयुक्त सभी आकर मिल भी सकते हैं । वस्तुतः अध्यात्य में प्रात्मा दर्शनों के हम ऋणी हैं जिन्होंने प्रात्मस्वरूप को पहचानने का विवेचन बड़ा रूचिपूर्ण विषय है। कहना न होगा के लिये विभिन्न मार्ग बताये हैं ।
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