Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1964
Author(s): Chainsukhdas Nyayatirth
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 163
________________ महावीर वर्द्धमान महावीर के जन्म के समय भारत का सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण पूर्णतः विषाक्त था । लोग क्रिया कांड़ों में उलझे हुए थे स्त्री और शूद्रों की स्थिति प्रत्यन्त शोचनीय एवं दयनीय थी । ऐसी स्थिति का जनमत विरोधी था लेकिन उसके विरुद्ध बोलने का किसी में साहस नहीं था । जाति एवं धर्म के नाम पर गरीबों एवं छोटी जातियों के सभी लोगों पर जुल्म ढाये जाते थे । शिक्षा का पूर्णतः प्रभाव या । ऐसे समय में महावीर स्वामी का जन्म विराट प्रदेश के कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ के यहां हुआ । उनकी माता का नाम त्रिशला था जो उस समय के शक्ति सम्पन्न महाराज चेटक की पुत्री थी । उनका जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन की शुभ बेला में हुआ । महावीर के जन्म होते ही सारे जगत में श्रानन्द की लहर दौड़ गयी । पीड़ित, दलित एवं त्रसित प्राणियों ने सुख की सांस ली। चारों ओर उत्सव मनाये जाने लगे, नगर को विशेष रूप से सजाया गया । तोरण एवं बंदनवार बांधी गयी । बाजे बजाये गये एवं घर घर में मंगल गीत गाये जाने लगे । सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला अपने लाड़ले पुत्र का मुख देख कर फूले नहीं समाये । श्रौर ऐसा होनहार बालक को पैदा कर अपने जीवन को धन्य माना । महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था । वे धीरे धीरे बड़े होने लगे । अपनी बाल-सुलभ क्रीड़ामों से वे सारे महल को अनन्दित कर देते थे। जो भी उन्हें गोद में लेता वही अपने जीवन को धन्य समझता । बचपन में ही वे साहसी एवं व्युत्पन्न मति थे । वे जब अपने साथियों के साथ खेलते तो खेल हो खेल में अपनी बुद्धि कौशल का खूब परिचय देते। एक बार जब वे उद्यान 1 Jain Education International • राजकुमारी लुहाड़िया धर्मालकार जयपुर में खेल रहे थे तो उन्हें प्रकस्मात ही उधर हो दौड़ कर प्राता हुआ सर्प दिखाई दिया । सब साथी उसे देखते ही भाग गये । लेकिन महावीर डरे नहीं और उन्होंने उसकी पूंछ पकड़ कर उसे बहुत दूर फेंक दिया । यह उनके साहस एवं अहिंसक जीवन का प्रथम स्वरूप था । वर्द्धमान बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे । वे प्रतिभा सम्पन्न थे । श्राप समस्याओं को सुलझाने में बड़े चतुर थे । उनसे समस्यानोंके समाधान के लिये कितने ही व्यक्ति प्राते और महावीर बातों ही बातों में उनका समाधान इस तरह से करते कि सभी उनको बुद्धि को भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए जाते। एक बार दो चारण ऋिद्धिचारी मुनियों को शंका हो गई और वह शंका उनके दर्शन भाव से दूर हो गई । क्यों न हो महावीर तीर्थङ्कर जो ठहरे । मति, श्रुति, अवधि तीनों ज्ञान के वे धारी थे । उन्होंने शीघ्र ही शिक्षा समाप्त कर लो । गम्भीर ग्रंथों का उनको ज्ञान हो गया । इनकी बुद्धि एवं स्मरण शक्ति को देखकर बडे बडे विद्वान भी हैरान हो जाते । इस प्रकार थोड़े ही समय में महावीर अपनी बुद्धि, ज्ञान एवं प्रतिभा के लिये भारत के कोने-कोने में प्रसिद्ध हो गये । वे गंभीर प्रकृति के थे । चिंतन मनन एवं स्वाध्याय में वे अपना अधिक से अधिक समय लगाते । For Private & Personal Use Only जब वे युवावस्था में पहुँचे तो उनकी गम्भीरता और भी बढ गयी । वे अत्यंत एकांत प्रिय हो गये । सांसारिक वैभव से दूर एकांत में ही वे मानव जीवन को गंभीर समस्याओं पर मनन करने लगे। जब महावीर बडे हुये तो उनके विवाह का प्रश्न उपस्थित हुआ | वे विवाह के प्रश्न को सदा ही टालते रहे क्योंकि उनका मन तो किसी ही ग्रन्य प्रोर हो लगा हुआ था । महावीर ने भो www.jainelibrary.org

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