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दंदाड़ी जैन गद्य साहित्य
• गंगाराम गर्ग एम. ए., रिसर्च स्कोलर जयपुर
जैन गद्यकारों के ग्रन्थ दो प्रकार के हैं-टीका ग्रन्थ एवं मौलिक ग्रन्थ । ढुंढाड़ प्रदेश में टीकाएं अधिक लिखी गई हैं। संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश में लिखे लिखे ग्रन्थों को समझना जब साधारण जनता के लिए कठिन हो गया तो धर्मप्रेमी विद्वानों ने उनका अनुवाद जन-प्रचलित भाषा में करना शुरू किया जिससे वे सहज बोध गम्य हो सकें।
बहत् राजस्थान बनने से पूर्व यह प्रान्त कई भागों में टब्बा-टब्बा बहुत संक्षिप्त टीका होती है। ट विभाजित था-मारवाड़, मेवाड़, ढाड़ आदि। इनमें मूल शब्द का अर्थ उसके नीचे, पार्श्व में अथवा शेखावाटी के अतिरिक्त समस्त जयपुर राज्य का नाम अधिकांशतः ऊपर लिख दिया जाता है। यह टीका इंढाड़ है। प्रदेश के नाम के आधार पर ही यहां की जन-साधारण के लिए उपयोगी नहीं कही जा सकती; भाषा ढाडी कहलाई जो राजस्थानी और ब्रज दोनों के क्योंकि शब्दार्थ लिखे जाने मात्र से मूल का भाव मेल-जोल से बनी है। जयपुर को सदा विद्वानों का समझना कठिन होता हैक्षेत्र बनने का सौभाग्य प्राप्त होने के कारण ढूढाड़ी को
उदाहरण:
दी भी साहित्यिक भाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ है।
मोहक्षयात् ज्ञानदर्शनावरणांतराय क्षयाच्चं केवलं इस भाषा में पद्य तो अन्य सम्प्रदायों के कवियों का भी
___ अर्थात्-मोह कर्म के क्षय तै, ज्ञानावरणी दर्शनाय मिलता है, किन्तु गद्य की रचनाएं अद्यावधि केवल जैन
वरणीय, अन्तराय, इन च्यारि. कर्मनि के क्षय ते नि लेखकों की ही उपलब्ध हुई हैं।
केवल ज्ञान ही है। जैन गद्यकारों के ग्रन्थ दो प्रकार के हैं-टीका ग्रन्थ
बंधहेत्वभावनिजराभ्यां कृष्णकर्मविप्रमोक्षो मोक्ष ।' एवं मौलिक ग्रन्थ । ढूंढाड़ प्रदेश में टीकाएं अधिक लिखी
अर्थात्-बंध हेतु कारण जु है मिथ्यात्वादि तिनके गई हैं। संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रश में लिखे ग्रंयों को
प्रभाव करि अरु निर्जरा करि, समस्त कर्मों सेती मोक्ष समझना जब साधारण जनता के लिए कठिन हो गया तो धर्म-प्रमी विद्वानों ने उनका अनुवाद जन-प्रचलित
कहिए छूटिबौ सोई मोक्ष कहिए । भाषा में करना शुरू किया जिससे वे सहज बोध गम्य राजस्थानी टब्बा का भी यही स्वरूप है ।२।। हो सकें । टीकानों के भी तीन प्रकार है-(१) टब्बा बालावबोध-बालावबोध ऐसी सरल और सुबोध (२) बालावबोध (३) वचनिका ।
टीका है जिसे कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी आसानी से १. दौलतराम कृत तत्वार्थ सूत्र की टब्बा टीका अध्याय १०, १, २. २. शिवस्वरूप शर्मा कृत राजस्थानी गद्य साहित्य का उद्भव और विकास ५-१४
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