Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1964
Author(s): Chainsukhdas Nyayatirth
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 137
________________ महाश्रमण महावीर का दिव्य जीवन महाश्रमण महावीर जगत के उन महापुरुषों में से हैं जिन्होंने अपने त्याग तपस्या एवं पावन उपदेशों से प्राणी मात्र को जीवन विकास का एक नया मार्ग दिखलाया । महावीर ने राज पाट छोड़ा, भोग विलास छोडे । संसार की सभी सुख सुविधानों को सामग्री त्यागी और निर्ग्रथ तपस्वी बन कर स्वयं सुख शान्ति का मार्ग खोजा एवं जगत के दुखी प्राणियों को बताया । उस मार्ग पर पहिले स्वयं अवतरित हुये और फिर मानव मात्र को उस पर चलने का उपदेश दिया । उन्होंने सर्वप्रथम १२ वर्ष की घोर तपस्या के पश्चात् पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया, सर्वज्ञ बने और फिर अपने ज्ञानामृत से जगत को सिञ्चित किया । श्रात्मोद्धार का जो मार्ग उन्होंने बतलाया वह सीधा सादा था । इसलिये लाखों मानव स्वतः ही उनकी ओर प्राकृष्ट हो गये और अपने जीवन को उनके बतलाये हुये मार्ग पर चलकर पावन किया । ऋषभदेव राम कृष्ण एवं पार्श्वनाथ के इस देश में उन्होंने अहिंसा एवं प्रेम की गंगा बहायी तथा भारत के एक छोर से दूसरी छोर तक जनमानस को पवित्र किया। वे जबरदस्त प्रभावशाली थे; इसलिये जो भी उनके पास श्राता वह उनका हो जाता | शास्त्रार्थ करने वाले बड़े २ दिग्गज पंडित उनके शिष्य बनकर लौटते । श्रहिंसा और सत्य के वे मसीहा थे । महावीर अपने समय के सर्वोपरि महापुरुष थे । वे मानवों द्वारा ही पूजित नहीं थे किन्तु देवताओं द्वारा भी भगवान महावीर जहां उपदेश देते थे उस सभा को समवसरण कहा जाता था। वहां बैठने के लिये १२ कक्ष नियत थे जिनमें मुनि, आर्जिका मनुष्य एवं स्त्रियों के अतिरिक्त पशु पक्षी भी आकर धर्म श्रवण करते थे । उनकी इस सभा में मनुष्य मात्र को आने का अधिकार था तथा जाति, धर्म एवं वर्ण का कोई प्रतिबन्ध नहीं था । परम अहिंसक प्रशम मूर्ति एवं क्षमाशील तीर्थंकर के प्रभाव से समवसरण में प्राये हुये विरोधी प्राणी भी अपने जातिगत विरोध को भूल जाते और उनके पावन उपदेश का पालन करते थे । Jain Education International · कस्तूरचंद कासलीवाल एम. ए. पी-एच. डी. वन्दनीय थे । देव एवं मानव दोनों ही उनकी सेवा एवं सुरक्षा में तत्पर रहते - लेकिन वे किसी से कुछ सेवा नहीं लेते। उनका कहना था कि श्रात्म स्वातन्त्र्य के युद्ध में मानव को अपने स्वयं के बल पर ही आगे बढना चाहिए । सफलता उन्हीं का चरण चूमती है जो परमुखापेक्षी नहीं होते । इसलिये उन्होंने भारतीय जीवन में परिवर्तन लाने के लिये जो भी क्रान्तिकारी कदम उठाये उसमें वे पूर्ण सफल हुये । श्राज हम ऐसे ही महामानव एवं महाश्रमण की जयन्ती मना रहे हैं । जन्म महावीर का जन्म ग्राज से २५६२ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन बिहार प्रदेश के कुण्डल ग्राम में हुआ था । उनके पिता क्षत्रिय वंश के थे और उसी ग्राम के राजा थे । उस समय वहां गणतन्त्र था और महाराजा सिद्धार्थ उस गणतन्त्र के प्रमुख थे । उनको माता प्रियकारिणी त्रिशला थी जो लिच्छवियों के गणतन्त्र के प्रधान राजा चेटक की बहिन थी । महाराजा सिद्धार्थ उस समय के प्रभावशाली एवं जनप्रिय शासक थे । For Private & Personal Use Only बाल्यावस्था महावीर जन्म से ही विशिष्ट ज्ञान के धारी थे । उनकी बुद्धि प्रखर थी और वे अपने साथियों में प्रमुख थे । वे मेघावी एवं व्युत्पन्नमति थे । विपत्ति में वे www.jainelibrary.org

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