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सकता। अरस्तु ने यथार्थ ही कहा था कि सद्गुरण एक व्यक्ति भी सदगुण को कोने-कोने में प्रसारित कर सकते सविकल्पक निर्वाचन का अभ्यास है। चरित्र में सद्गुरण हैं । नैतिक शिक्षा के लिए किसी बल के प्रयोग करने को विकसित करना सरल कार्य नहीं है। ऐसा करने के की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक मनुष्य का अन्तःकरण लिये सर्वप्रथम दृढ़ संकल्प की पावश्यकता है मन तथा सद्गुण ग्रहण करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। इन्द्रियों पर संयम रखने के लिए कड़े अनुशासन की अतः जब वह किसी अन्य व्यक्ति को सद्गुण का अनुसआवश्यकता है। चरित्र के निर्माण के लिए न ही केवल रण करते हुए देखता है, वह तुरन्त उसे स्वयं अपनाता कड़े अनुशासन की आवश्यकता है, अपितु उसमें ऐसे है और स्वयं अपनी भूल पर पश्चाताप भी करता है। उदाहरणों की भी आवश्यकता है, जिनमें कि कुछ व्यक्ति यही कारण है कि चरित्र की प्रशिक्षा सैद्धान्तिक ज्ञान व्यावहारिक रूप से सद्गुणों का प्राचरण करते हों। अथवा उपदेश द्वारा नहीं दी जा सकती, अपितु साक्षात अंग्रेजी भाषा में कहा गया है "व्यावहारिक उदाहरण व्यावहारिक उदाहरण के द्वारा दी जा सकती है। केवल धारणा प्रस्तुत करने की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है। इसी प्रकार संयम का अनुसरण करने से नैतिकता जिस प्रकार बुरी आदतें एक छूत के रोग की भांति तुरन्त का स्वतः ही विकास होता है । पूर्व तथा पश्चिम में फैल जाती हैं, उसी प्रकार सद्गुरण भी मनुष्यों द्वारा उत्कृष्ट से उत्कृष्ट धर्मों में संयम को प्राध्यात्मिक विकास अनुकरण की प्रवृत्ति के कारण ग्रहण किए जाते हैं। का अनिवार्य साधन माना गया है। संयम हमारा ध्यान प्रायः लोग यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि जब बहुमत ___ अान्तरिक जीवन की पोर ले जाता है और हमारे दुराचारियों का हो, तो वहां सदाचारियों की अल्प संख्या व्यक्तित्व का कायाकल्प कर देता है। भारत में तो समाज में नैतिक क्रान्ति उत्पन्न नहीं कर सकती। किन्तु संयम को जीवन का मूल प्राधार माना गया है और ऐसी धारणा सर्वथा भ्रान्त धारणा है । यदि एक व्यक्ति । कहा गया है कि "संयम ही जीवन है।" जब किसी भी दृढ़ प्रतिज्ञ होकर सदाचार का जीवन व्यतीत करता समाज में थोड़े से व्यक्ति भी प्रादर्शों को अपने जीवन में है. तो असंख्य अन्य व्यक्ति उससे प्रेरित होकर सदाचारी उतारते हैं, वे संयम का अनुसरण करके ही न केवल स्वयं बन जाते हैं। राम, कृष्ण, महावीर बुद्ध, ईसा आदि परम आनन्द का अनुभव करते हैं, अपितु सच्ची समाज महापुरुषों ने जगत के असंख्य जीवों को सदाचारी बनने सेवा द्वारा अन्य प्राणियों का भी लाभ करते हैं। जिस की प्रेरणा दी है। यह उनकी सदाचार शक्ति थी। समाज में इस प्रकार की नैतिकता का विकास होता भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास इस बात का है और जिसमें प्रत्येक व्यक्ति सद्गुणों की प्रतिमूर्ति बन साक्षी है कि महात्मा गांधी जैसा छोटे शरीर वाला एक जाता है, तो उस समाज के लिए न तो किसी प्रकार के व्यक्ति कोटि २ मनुष्यों में सत्य और अहिंसा के प्रति बाहरी अनुशासन की अावश्यकता रहती है और न उसे प्रेम उत्पन्न कर सकता है और उन्हें सत्याग्रह का पालन किसी प्रकार की नैतिक प्रशिक्षा से लाभ होता है। करने पर प्रेरित कर सकता है । महात्मा गान्धी के जीवन सदगुणों के विकास का व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए का उदाहरण एक ऐसा शाश्वत नै तिक स्रोत है, जिससे भारी महत्त्व है किन्तु अभी तक विश्व में किसी भी ऐसे असंख्य व्यक्तियों ने नैतिक जीवन व्यतीत करने की समाज की स्थापना नहीं हो सकी, जो सर्वगुण-सम्पन्न हो देशमा प्राप्त की है और पागे पाने वाली पीढ़ियों में भी और जिसमें राजकीय अनुशासन और व्यवस्था की जरूरत असंख्य व्यक्ति ऐसी प्रेरणा प्राप्त करते रहेंगे।
न हो । यही कारण है कि प्रत्येक समाज में नैतिकता की न ही केवल महापुरुष सदाचारी जीवन का प्रेरणा- प्रगति के लिए नैतिक प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है त्मक उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं, अपितु सामान्य और नैतिक सुधारकों का क्षेत्र बना रहता है।
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