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है उसी प्रकार राजा को भी अपने सिंहासन पर प्रारूढ़ है। पाणिनि की प्रसिद्ध अष्टाध्यायी का काल भी छटी होकर समस्त पृथ्वी का पालन करना चाहिये।
सदी ई.पू० के लगभग ही माना जाता है । अष्टाध्यायी यह सब वे मार्मिक उपदेश हैं जिनसे राजानों का
यद्यपि व्याकरण ग्रन्थ है पर उसके तद्धित प्रकरण में जीवन लोक कल्याण कारी बन जाता है। प्राचार्य ने बहुत से ऐसे सूत्र हैं जो इस युग के जनपदों व उनकी गुप्तचरों की महता का वर्णन करके उनको राजोपयोगी शासन संस्थानों पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। बताया है। उनके शब्दों में ही दूत वह है जो चतर हो. गणतंत्र जनपद शूरवीर हो, निर्लोभी हो, प्राज्ञ हो, गम्भीर हो, प्रतिभा
बौद्ध साहित्य में स्थान-स्थान पर सोलह महाजन शाली हो, विद्वान् ही प्रशस्त वचन बोलने वाला हो,
पदों का उल्लेख पाता है । यह सूची बौद्ध साहित्य में सहिष्ण हो, द्विज हो, प्रिय हो और जिसका प्राचार अनेक स्थानों पर एक ही ढंग से उपलब्ध होती है। यह निर्दोष हो ।
सूची एक श्लोक के रूप में है । इस सोलह महाजन पदों पूर्ण राजतंत्र का संचालन अर्थ द्वारा होता है में एक ही प्रकार की शासन पद्धति न थी-उनमें से इसलिये राजाओं को राज की प्राय वृद्धि के लिये प्रत्येक कुछ राजतंत्र थे और अन्य गणतंत्र । गणतंत्र में कोई उपाय करने चाहिये।
वंश क्रमानुगत राजा नहीं होता था। जनता स्वयं ही महाजनपद
अपना शासन करती थी। सोलह महाजनपदों में वज्जि, जिन जन पदों का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है मल्ल और शूरसेन राज्यों का गणतन्त्र होना निश्चित है शासन पद्धति की दृष्टि से ये जनपद प्रधानतया दो माना जाता है । पर इनके अतिरिक्त अन्य भी अनेक प्रकार के थे-राजतन्त्र और गणतन्त्र । दुर्भाग्यवश गणराज्यों का उल्लेख बौद्ध साहित्य में मिलता है जो महाभारत के समय और छटी सदी ईसा पूर्व का राज- निम्नलिखित हैंनैतिक इतिहास प्रायः प्रज्ञात ही है। इतिहासकारों ने (१) कपिल वस्तु के शाक्य, (२) राम ग्राम के लिये थोड़ा बहत इस अन्धकारमयी काल को भेदने का प्रयास कोलिप (३) मिथिला के विदेह (४) पिप्पलिवन के भी किया है किन्तु उन में बड़ा ही मतभेद है। कारण
मल्ल, (५) पावा के मल्ल (६) पिप्पलिवन के मोरिय, इस काल का कोई ऐसा साहित्य भी उपलब्ध नहीं है (७) अल्ल कप्प के बुलि, (८) ससुभार पर्वत के मग्ग. जिसके माधार पर जहां राजनैतिक इतिहास को क्रमबद्ध (६) केसपुत्र के कालाम और वैशाली के लिच्छवी। रूप से तैयार किया जा सके वहाँ साथ ही इस युग की मिथिला के विदेह और वैशाली के लिच्छवी राज्यों शासन संस्थानों का भी परिचय प्राप्त किया जा सके। के संघ को वज्जि कहा जाता था। परन्तु छटी सदी ईसा पूर्व से इस दिशा में अन्तर पाना लिच्छवी गण प्रारम्भ हुा । इस सदी में महात्मा बुद्ध ने अष्टांगिक महात्मा बुद्ध के कारण कपिल वस्तु के शाक्यों का प्रार्य धर्म का प्रतिपादन किया और जैन धर्म के चौबीस जितना महत्व है ठीक उसी प्रकार वैशाली के लिच्छवी वें तीर्थकर बर्द्धमान महावीर भी इसी सदी में उत्पन्न भी विशेष महत्ता है । भगवान् महावीर की यह पुण्य हये । बौद्ध और जैन साहित्यों में जहां बुद्ध और महावीर
भूमि है, इनका प्रादुर्भाव वैशाली के राज्य संघ में हमा का चरित्र संकलित है वहाँ साथ ही उन जनपदों और था। वैशाली के शक्तिशाली राज्य संघ में सम्मिलित राजारों के सम्बन्ध में भी उनके द्वारा बहुत सी बातें ज्ञातृकगण में उनका जन्म हुअा था । ज्ञातृकगण वज्जि जात होती हैं जिनका इन धर्माचार्यो के साथ घनिष्ट राजसंघ के प्रतर्गत था। यही कारण सम्बन्ध था। निरन्तर विकास द्वारा भारत के विविध धार्मिक साहित्य इस संघ के विषय में विशेष प्रकाश जन पदों में जिस प्रकार की शासन संस्थाएँ स्थापित डालता है । बौद्ध साहित्य से भी इसके विषय में हो गई थीं उनका भी इस साहित्य से परिचय मिलता बहुत सी ज्ञातव्य बातें विदित होती हैं।
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