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न धर्म का उदय और विकास
• डा. पुरुषोत्तमलाल भार्गव
अध्यक्ष, संस्कृत विभाग राजस्थान विश्व विद्यालय, जयपुर
श्री कृष्ण और नेमिनाथ दोनों ही ऐसे समय में हुए थे जब भारतीय समाज में अनेक दोष पागए थे और नैतिक दृष्टि से उसका अधःपतन हो गया था। सामाजिक क्षेत्र में ही नहीं धार्मिक क्षेत्रों में भी यही स्थिति थी । यज्ञों में पशुबलि जैसे क्रर कर्म की प्रचुरता समभ.दार मनुष्यों को अवश्य खलती होगी। अतः इन दोषों को दूर करने के लिए एक ही कुल में दो महापुरुष उत्पन्न हुए जिन्होंने अपने ढंग से लोगों को सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न किया।
जैन और बौद्ध दोनों ही अपने अपने धर्म के चौबीस पुराणों में भी मिलता है। दुर्भाग्यवश हमारे वर्तमान
प्राचार्य मानते हैं । जैन धर्म के प्राचार्य जिन ज्ञान की हीन अवस्था के कारण इनके समय और अथवा तीर्थङ्कर कहलाते है और बौद्ध धर्म के प्राचार्य ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में कुछ कहना असम्भव है। बद्ध कहलाते हैं। प्रारम्भ में पाश्चात्य विद्वान् वर्धमान यही दशा इनके बाद के बीस तीर्थङ्करों की है। परन्तु महावीर और सिद्धार्थ गौतम के अतिरिक्त उनके पूर्व बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ के समय और ऐतिहासिकता के सभी तीर्थङ्करों और बुद्धों को कपोलकल्पित मानते पर प्रकाश डालने के लिए हमारे पास पर्याप्त साक्ष्य थे परन्तु बाद मे हर्मन जैकोबी नामक जर्मन विद्वान् ने उपलब्ध हैं। जैन साहित्य के अनुसार नेमिनाथ श्रीकृष्ण जैनों के तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता के चचेरे भाई थे। इस कथन की सत्यता में सन्देह को स्वीकार किया। यदि तत्त्वान्वेषण की भावना से करने का कोई कारण नहीं है। सौभाग्यवश श्रीकृष्ण के इस प्रश्न का अध्ययन किया जाय तो मानना पड़ेगा कि समय का अनुमान करने के लिए ऐतिहासिक सामग्री का जैन और बौद्ध दोनों ही धर्म छठी शताब्दी ई. पू. के प्रभाव नहीं है । चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग ३२० ई. पू. बहत पहले जन्म ले चुके थे । अशोक के एक अभिलेख में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त मौर्य से ज्ञात होता है कि उसके भी समय के पूर्व नेपाल की तराई में निगलीवा नामक स्थान में बाईसवें बुद्ध कनक- पुराणों के अनुसार चौतीस पीढ़ियों ने राज्य किया । मुनि का स्तूप था जिसे अशोक ने परिवधित कराया था। यदि हम एक पीढ़ी का औसत राज्यकाल बीस वर्ष मानें यह निश्चित है कि यह स्तूप एक काल्पनिक व्यक्ति की तो ३४ पीढ़ियों का समय ६८० वर्ष होगा। ३२० में स्मृति में नहीं बनी होगा। जैन धर्म भी महावीर स्वामी ६८० जोड़ने पर हमें युधिष्ठिर का समय १००० ई. पू. से ही नहीं पार्श्वनाथ से भी पहले का है इसे अनेक प्राप्त होता है अतः श्रीकृष्ण और उनके भाई नेमिनाथ प्रमाणों से सिद्ध किया जा सकता है।
का भी यही समय हुप्रा । जैन धर्म के आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव माने जाते श्रीकृष्ण और नेमिनाथ दोनों ही ऐसे समय में हुए हैं । ऋषभदेव का उल्नेख जैन साहित्य में ही नहीं थे ज़ब भारतीय समाज में अनेक दोष आगये थे और
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