Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1964
Author(s): Chainsukhdas Nyayatirth
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 101
________________ बहुमत में होने से शासनतंत्र में उन्हीं का एकाधिपत्य को नहीं (वह अचेतन से ही चेतन की ( Dictatorship ) है । उद्योग धंधों और बैंकों का है)। यही अपरिग्रहवाद और समाजवाद में सबसे बड़ा समाजीकरण करदिया गया है । कृषि फार्मों पर संयुक्त और बुनियादी अंतर है कि जिसके कारण दोनों की या सहकारी संस्थानों का स्वामित्व है (भूमि स्टेट की है) "सुख क्या है" इस विषय की धारणा अलग २ होगई यद्यपि ऐसे भी खेत हैं जिनमें राज्य स्वयं खेती करता है । जहाँ अपरिग्रहवाद आध्यात्मिक सुख को ही महत्व है। संयुक्त या कृषि सहकारी संस्थाएं खेती ही नहीं देता है, समाजवाद भौतिक सुख को ही सुख मानता है, करती, पशुगलन, पानी व पाटे की चक्कियां, डेरी फार्म, समाजवाद भौतिक सुख को ही 'सुख' मानता है। जूते बनाना, इंटें बनाना, लकड़ी के काम तथा बर्तन अपरिग्रहवाद की 'सुख' संबंधी मान्यता यह है कि सुख बनाने प्रादि उद्योग भी चलाती हैं। किसान अपने २ का स्रोत मात्मा के अंदर है । सुख बाहर से नहीं पाता। मकान से लगी हुई जमीन पर वैयक्तिक खेती भी कर भौतिक वस्तुप्रों में सुख नहीं है, प्रत्युत भौतिक वस्तुओं सकते हैं परन्तु केवल इतनी सी ही कि जिसे वे अपने ही में व्यक्ति जितना अधिक ममत्व (प्रासक्ति) रक्खेगा श्रम, बिना किसी को नौकर रक्खे कर सकते हों । उतनाही अधिक दुखी होगा। यदि भौतिक वस्तुओं में इसी प्रकार दस्तकार लोग भी बिना किसी को नौकर ही सुख का स्रोत होता तो प्रत्येक वस्तु उसका व्यवहार रक्खे अपनी छोटी २ दुकानें व्यक्तिगत रूप से चला करने वाले सब व्यक्तियों को सर्वदा एकसा सुख देती परन्तु सकते हैं। वहां प्रत्येक स्वस्थ मनुष्य के लिए श्रम करना अनुभव से यह बात सिद्ध नहीं होती । जिस रोटी को एक पावश्यक है । जो श्रम नहीं करता उसे समाज से कुछ व्यक्ति घृणा करके फेंक देता है उसी को दूसरा व्यक्ति बड़े लेने का भी अधिकार नहीं है। वेतन काम के अनुसार प्रानंद के साथ खाता है । एक व्यक्ति अपनी सुदर पत्नी दिया जाता है (आवश्यकतानुसार नहीं कि जैसा मार्कस से बड़ा स्नेह करता है परन्तु जिस क्षण उसे यह ज्ञात होता ने प्रतिपादित किया है), "From each accor- है कि वह दूराचारिणी है उसे दुश्मन समझने लग ding to his ability. to each accor- जाता है। इससे सिद्ध होता है कि सुख का स्रोत हमारे ding to his work" वहां अपनी प्राय से बचाकर अन्दर है बाहर नहीं । हम बाह्य वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रत्येक व्यक्ति वैयक्तिक संपत्ति भी रख सकता है और जैसी हमारे लिए इष्ट या अनिष्ट होने की धारणा उसे अपने रहने के मकान, घरेलू उपयोग के सामान बना लेते हैं सी ही अच्छी या बूरी हमें प्रतीत होने और अपने गृह उद्योग में लगा सकता है परन्तु उससे लगती हैं। जिस वस्तु को हम अपने लिए अनिष्ट बडे २ उद्योग धधे चलाकर लाभ नहीं कमा सकता। समझते हैं उसका संयोग होने पर हम दुःख अनुभव प्रस्तु अपने ही श्रम से कमाई हुई प्राय की बचत एक करने लगते हैं और जिसे इष्ट समझते हैं उसके संयोग सीमा तक ही संग्रह हो सकती है। वैयक्तिक संपत्ति के से अपने पापको सुखी अनुभव करते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तराधिकार का अधिकार भी वहां है । इस प्रकार जहाँ प्राध्यात्मिक सुख स्थायी होता है, भौतिक वस्तनों सोवियत रूस ने कार्लमार्कस के सिद्धांतों में व्यवहारिकता से प्राप्त सुख अस्थायी होता है । अस्तु अपरिग्रहवाद के का विचार कर संशोधन कर लिया है। अन्य कई देशों अनुसार, भौतिक वस्तुओं के प्रति ममत्व प्रौर पर द्रव्य में भी राज्य व्यवस्था में भिन्न २ प्रकार के परिवर्तनों के में इष्ट अनिष्ट कल्पना ही दुख का कारण है। इसीको साथ समाजवाद प्रयोग किया जारहा है । उसने 'परिग्रह' संज्ञा दी है और बताया है कि मानव अपरिग्रहवाद प्रचेतन (प्रकृति) से भिन्न चेतन तत्व उतना ही अधिक सुखी होगा जितना अधिक वह अपने (मात्मा) के प्रनादि अस्तित्व को मानता है (क्योंकि परिग्रह को, संग्रह की भावना को, वैयक्तिक संपत्ति को सुख दुख अनुभव करना अचेतन का गुण नहीं हो सकता) और अपने जीवननिर्वाह की आवश्यकताओं को स्वेच्छा. जबकि समाजवाद प्रकृति को मूल तत्व मानता है, प्रात्मा पूर्वक कम कर देगा । अपरिग्रहवाद, तरह तरह के वैज्ञानिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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