________________
७६
छीनने के लिए उनका खून किया गया, उनके साथ तक के अनुभव से पूर्णतया प्रमाणित है। यदि समाजप्रमानवीय व्यवहार किया गया। यही नहीं, जिन लोगों वादी विचार धारा से जनसाधारण को लाभ होना है को वहां राज्य सत्ता प्राप्त हुई उनने अपनी सत्ता, कायम तो इस पद्धति तथा चुनाव प्रणाली में मामूलचूल परिवरखने के लिए लोगों की विचार प्रगट करने की स्वतंत्रता र्तन आवश्यक है। का हनन कर दिया और अपने विरोधियों को, चाहे वे
२. समाजवाद चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी समाजवादी विचार धारा वाले ही थे, मौत के घाट
योग्यतानुसार तो काम करे परन्तु लेवे केवल अपनी उतार दिया । अत: समाजवादी विचार धारा वा ने कुछ
आवश्यकतानुसार । परन्तु रूस तथा अन्य समाजवादी देशों ने इस दोष को दूर करने का प्रयत्न किया है ।
देशों ने भी इसे अव्यवहारिक पाया है। रूस में ही जहां उनने निश्चय किया है कि समाजवाद वैधानिक तरीकों
एक व्यक्ति को २५० रुबल मासिक मिलता है, दूसरे से ही लाया जावेगा, बलपूर्वक नहीं । बिना उचित
को ४००० रुबल मिलता है । और अधिक वेतन पाने मुप्रावजा दिये किसी की संपत्ति नहीं छीनी जावेगी
बाले लोग अपनी बचत को बैंक में जमा कर ब्याज भी और प्रत्येक व्यक्ति को विचार प्रगट करने की पूर्ण
कमा सकते हैं और उसका उत्तराधिकार भी दे सकते हैं। स्वतंत्रता होगी। परन्तु उननै पूजीवादियों से पोषण
इससे प्रगट होता है कि जिसका जितना महत्वपूर्ण व पाने वाली उस पार्ल मेंट्री पद्धति को अपना लिया है
उपयोगी कार्य हो उसको उतनाही अधिक वेतन व लाभ जिसके संबंध में हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने
देना व बचत के संग्रह व उत्तराधिकार का अधिकार "हिंद स्वराज्य" में पृष्ठ ३० से ३८ पर निम्न विचार
देना समाजहित में अच्छा काम करने वाले तथा योग्य व्यक्त किये हैं।
व्यक्तियों के प्रोत्साहन के लिए आवश्यक है । इसका - "इंग़लेंड की इस समय जो हालत है उसे देखकर परिणाम-उँचा वेतन पाने वाले व्यक्तियों और उनकी तो सचमुच दया पाती है और मैं तो ईश्वर से मनाता संतानों के पास कालांतर में पूजी का संग्रह । धनी हूं कि वैसी हालत हिंदुस्तान की कभी न हो । जिसे आप व्यक्तियों की उत्पत्ति समाज में सर्वदा इसी प्रकार होतं पार्लमेंटों की मां कहते हैं वह तो बांझ और वेश्या है। रही है और विशेष योग्यता, प्रतिभा बाले और उत्तर"इतना तो सभी मानते हैं कि पार्लमेंट के मेम्बर ढोंगी दायित्व उठाने वाले व्यक्ति समाज में सर्वदा अन्य लोगों और स्वार्थी हैं। सब अपनी ही खेंचातानी में लगे रहते की अपेक्षा अधिक धनवान रहे हैं और रहेंगे प्रतः समाज. हैं।" "कार्लाइल ने पार्लमेंट को दुनिया भर की बकवास वादी व्यवस्था में भी न तो उन्हें धनवान बनने से रोका की जगह बतलाया है। जिस दल का जो मेम्बर होता जा सका है और न उनका धन छीना जा सका है। है, वह उसी दल को आँख मूद कर अपना मत देता ऐसी स्थिति में, धनवान व्यक्तियों के पास जनसाधारण है।" "जितना समय और धन पार्लमेंट बरबाद करती की अपेक्षा जो अधिक धन हो उसे निरुपयोगी न बना है, उतना समय और धन कुछ अच्छे प्रादमियों को मिले दिया जावे तो वे उससे इन्द्रिय सुख व विलासिता के तो जनता का उद्धार हो जाय । यह पार्लमेंट तो जनता ऐसे २ साधन जुटा लेते हैं जो साधारण लोगों को का सिर्फ एक मनोरंजन है, जिसमें उसका बड़ा खर्च उपलब्ध नहीं होते । जिनके पास इतनी प्राय नहीं होती होता है । इन्हें आप मेरे ही मनघढन्त विचार न समझे, उन्हें उससे ईर्षा होती है। उदाहरण के लिए एकबार बल्कि बड़े २ अक्लमंद अंग्रेजों के भी यही विचार है।" एक मजदूर ने मेक्सिम गोर्की से ( जो रूस के सर्वोच्च
"मेरा तो यह पक्का विचार है कि हिन्दुस्तान ने इङ्गलैंड लेखक और लेनिन के मित्र थे ) कहा "कामरेड, आपके . की नकल की तो उसका सर्वनाश हो जावेगा।" प्रचलित पास जो कोट है वह फटा हुमा नहीं है और मेरे पास
पार्लमेंटी पद्धति के संबंध में महात्मा गांधी द्वारा ५६ जो कोट है वह फटा हzा है, यह कहां का न्याय है।" - वर्ष पूर्व व्यक्त किये गये उपरोक्त विचारों का तथ्य अब प्रस्तु जब साधारण प्राय वाले व्यक्ति, अधिक प्रायवाले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org