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संवत्सरी पर्व का सांस्कृतिक महत्व
• बद्रीप्रशाद पंचोली मदनगंज किशनगढ़
अपने अपने समाज और सभ्यता के अनुसार किसी वस्तु को देखने की जिसी जाति या राष्ट की अपनी प्रांखें होती हैं। भारत में भी श्रद्धा व तप को केन्द्र मान कर जीवन यापन के लिए स्वतंत्र दृष्टिकोण का विकास हुआ है व तप से भारतीय स्वयं को वत्स के रूप में ढालता है व श्रद्धा से विश्वचेतना से पोषण प्राप्त करता है। संवत्सरी तपोमय जीवन के अभ्यास द्वारा मन को वत्सवत् संयत करके विश्वात्मक भाग का वात्सल्य प्राप्त करने के लिए मनाया जाने वाला उत्सव है।
शदा और तप भारतीय जीवन-दर्शन की सबसे बड़ी नगर (सद्ध नगरं किच्चा) ६ कहा गया है। यही नही
' विशेषताएँ हैं । वैदिक, जैन व बौद्ध-तीनों परंप- त्रिविधि सभ्यक्त्व की सिद्धि के लिए श्रद्धा अनिवार्य रानों में इनका स्थान असंदिग्ध है । भगवान बुद्ध ने गुण माना गया है ७ । श्रद्धा ने भारतीयों को धर्मनिष्ठ प्रध्यात्म-कृषि के लिए श्रद्धा को बीज तथा तप को वृष्टि बनाया है तो तप ने कर्मजीवी । (सद्धा बीजं तपो वुट्ठि)' कहा है। ऋग्वेद में श्रद्धा उपयुक्त तीनों परंपरानों को एक दूसरे से असंपृक्त को सम्पत्ति का शीर्ष, प्रार्थितफलदात्री व उपासना करने मानकर अध्ययन करने पर भारतीय सांस्कृतिक जीवन योग्य २ कहा गया गया है। गीता में यो यच्छद्ध स एव के ऐसे तथ्य सामने आते है, जिनकी पोर (सामान्यतया) सः' कह कर श्रद्धा को सर्वोपरि माना गया है । इसी अध्येतानों का ध्यान अभी तक नहीं गया है। उत्सबों तरह तप से स्वर्ग जाने की बात भी कही गई है । के सम्बन्ध में इन पररंपराओं को एक साथ मिलकर अभी सत्य, ऋत, ब्रह्म, यज्ञ आदि प्राध्यात्मिक-विभूतियों के तक अध्ययन नहीं हुआ हैं। जब कि इस दृष्टि से भारत साप तप राष्ट्र को धारण करने वाला है । इसी तरह में सांस्कृतिक एकता के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होता जैन-परम्परा में भी तप को ज्योति (तपोज्योति)५ तथा प्राया है । उत्सव शब्द का तात्पर्य है- उन्-उत्कृष्ट+ श्रद्धा को जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने का साधन सब-यज्ञ । ये वैदिक यज्ञों से ही समाज की बदलती हुई
१. सुत्तनिपात-उरगवम्ग-कसि भारद्वाज मुन्न । २. ऋग्वेद १०.१५१ ३. ऋग्वेद १४१५४०२, १६७.? ४. अथर्ववेद १२।११ ५. उत्तराध्ययन सूत्र १२४३ ६. उपयुक्त सूत्र ६ ७. दर्शन पाहुड़ (कुन्दकुन्द)-२२
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