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जा सकता है । इस दृष्टि से धर्म एक ऐसी व्यवस्था है प्रारम्भ करने के लिये अनंत पथयात्रा में पाथेय प्रदान जो विकास के लिये मनुष्य के मन तथा मस्तिष्क को करती है। सव बात तो यह है कि उत्तरोत्तर समृद्ध परिपूर्ण आदर्श प्रदान करती है। यह आदर्श है-वैज्ञा- और शक्ति सम्पन्न जीवनयापन की दिशा में, उत्थान और निक और विवेकयुक्त मस्तिष्क का निर्माण, गहनरूप से पतन मनुष्य की धार्मिक तैयारी को ही परिलक्षित करते धार्मिक तथा व्यवहार कुशल चैतन्य का उद्बोध, सुनि- हैं तथा प्रगति के घुमारदार पथ में धार्मिक उतार-चढ़ावों श्चित किन्तु आवश्यकता के अनुसार परिवर्तनीय जीवन- को व्यक्त करने वाले पथचिह्नों का परिचय देते हैं । व्यवस्था, धैर्य सम्पन्न तथा जीवन की कठिनाइयों एवं अतएव इसमें कोई सन्देह नहीं है कि धार्मिकता न केवल मानवीय कमजोरियों के प्रति सहिष्ण प्रात्मत्व की व्यक्ति के विकास का पथ-प्रदर्शन करती है, वरन् संसार उपलब्धि एवं अनुशासित प्राचार-विवार ।
की कई बुराइयों को भी समाप्त कर सकती है। कई भारतवासियों का यह विश्वास है कि प्राणी जगत् सामाजिक बुराइयों के विस्तार को रोकने की क्षमता केवल इस भूमण्डल पर ही व्याप्त नहीं है अपितु स्वगिक इसमें है, सामाजिक चेतनाशक्ति में प्रारण फूकने की और नारकीय अवस्थिति से भी इसका गूढ संबंध है। ताकत इसमें है एवं व्यक्तियों के मानसिक, नैतिक तथा परमात्मा के अलौकिक स्वरूप की खोज करते-करते उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने की सामर्थ्य इसमें है । यह तत्व टूढ निकाला कि स्वर्ग, मयं और नरक इन फिरभी शामिकता सभी बार तीनों लोकों के बीच में एक विशिष्ट अनुरूपता है तथा में असमर्थ रही है, इसकी प्राणसंचार की सामर्थ्य कुठित यात्म द्रव्य इन सभी में सर्वत्र विद्यमान है। इन तीनों रही है तथा कई विषाक्त तत्वों के समिधा से इसकी ही लोकों में प्राणियों की शक्तियों का प्रवाध प्रादान- रोगनाशक शक्ति क्षीण हो गई है। फलतः संसार में प्रदान चल रहा है ताकि परमशक्ति के अनुरूप बिस्तृत सूख तथा शांति स्थापित करने में धार्मिकता असफल सिद्ध जीवन का विकास करने के लिये एकता को स्थापित
हुई है । इतिहास साक्षी है कि जो धर्म जितना प्रभावकिया जा सके । हाँ, प्रात्मा और परमात्मा के एकीकरण
शाली और विशाल रहा है उसने उतना ही अधिक का केन्द्र स्थल यह मर्त्यलोक ही है।
रक्तपात कर जन जीवन का संहार किया है । जो जमाना __भारतवासियों का दूसरा विश्वास यह है कि प्राणी. धार्मिक वातावरण से जितना ओतप्रोत और साधु-संतों जगत् के रहस्य में यह तत्व छिपा हुआ है कि इसमें से जितना अधिक व्याप्त रहा है वह युद्ध की विभीषिका सत्य और असत्य, नित्यत्व, और अनित्यत्व, प्रकाश और तथा नरबलि से भी उतना ही अधिक संतप्त रहा है। अंधकार जैसे परस्पर विरोधी स्वरूप एक साथ विद्यमान हिंसा का उत्पात धार्मिक और अधार्मिक सभी समाजों हैं, किन्तु जीवन की गति सत्य, अमरत्व और प्रकाश की में प्रायः समान रहा है। सुख तथा शांति की सुविधा पोर है ताकि अनंत सुख, अनंत ज्ञान, अनंत वीर्य और की दृष्टि से वर्तमान बीसवीं सदी को सर्वश्रेष्ठ माना अनंत दर्शन युक्त स्थिति उसे प्राप्त हो सके । जा सकता है, फिरभी मानव समाज के इतिहास में
प्रतएब भारतवासियों के लिये धर्म एक ऐसी जितना संहार इस सदी में हया है वह अकल्पित है। प्रकिया है जिसके जरिये मनुष्य की विविध वैयक्तिक मनुष्यों में मानवीयता जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, युद्ध और सामाजिक प्रवृत्तियों को प्रभावशाली ढंग से उत्तरो- की विभीषिका भी उतनी ही विकराल होती चली जाती त्तर शुद्ध और लोकमंगल के उन्मुख बनाया जाता है। है। लगता है जैसे संसार सर्वनाश के किनारे पर खड़ा इस प्रक्रिया में ऐसी अनेक स्थितियां है जहां पर मनुष्य है, जैसे धर्म और अधर्म कल्पनाविलास मात्र हैं, जैसे अपनी प्रवृत्तियों से अनुभव प्राप्त करके शक्ति-संचय के धर्म से शांति की कल्पना एक मिथ्या उपचार हैं एवं अनुसार स्व-परकल्याण के कार्य करता है। शुद्धीकरण जो लोग इसका गुणगान करते हैं वे "नीम हकीम खतरे को इस प्रक्रिया में उसकी अवनति भी उसे नया जीवन जान' से अधिक नहीं हैं। लोगों का यह विश्वास दृढ
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