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ज्योतिष, गणित प्रादि विषय रहे हैं, वहां सुपशास्त्र फल था कि दक्षिण में नए प्रादर्शों, नए साहित्य और और कामशास्त्र जैसे विषय भी रहे हैं ।
नए भावों का संचार हुआ ।' दक्षिणात्य विद्वान काल की दृष्टि से कन्नड़ साहित्य को प्राचीन, रामस्वामी अय्यंगार का कथन है-'जैन लोग बड़े विद्वान माध्यमिक और वर्तमान इन तीनों श्रेणियों में विभक्त
और ग्रन्थ रचयिता थे। वे साहित्य और कलाप्रेमी थे । किया जाता है। छठी शताब्दी से बारहवीं तक प्राचीन
जैनों की तमिल सेवा तमिल देशवासियों के लिए अमूल्य काल, बारहवीं से सत्रहवीं में शताब्दी तक माध्यमिक है । तमिल भाषा में संस्कृत शब्दों का उपयोग पहले काल और सत्रहवीं से आज तक वर्तमान काल माना पहन सबसे अधिक जैनों ने ही किया । उन्होंने संस्कृत जाता है। प्राचीन काल में जैन. माध्यमिक काल में शब्दों को उच्चारण की सुगमता की दृष्टि से यथेष्ट लिंगायत और वर्तमान काल में ब्राह्मण धर्मानुयायी रूप स
रूप से बदला भी है । कुरल के पश्चादवी युग में कन्नड़ के प्रमुख लेखक रहे है । यह विभाजन केवल प्रधानतः जैनों को संरक्षता में तमिल-साहित्य अपने प्रमुखता की दृष्टि से ही किया गया है । अन्यथा हर
विकास की चरम सीमा तक पहुंचा। तमिल साहित्य की काल में जैन लेखक कन्नड़ को समृद्ध बनाते रहे हैं । उन्नति का वह सर्वश्रेष्ठ काल था ! वह जैनों की विद्या आज भी यह कार्य चालू है।
और प्रतिभा का समय था ।" तमिल भाषा
तमिल में जैन साहित्यकारों के ग्रन्थ निर्माण का तमिल भाषा को द्राविडी भाषामों में सबसे अधिक प्रवाह मुख्यतः ईस्वी की छठी शताब्दी तक ही रहा प्राचीन माना जाता है । भाषा शास्त्रियों का मत है कि था। उसके पश्चात् वह क्षीण प्रायः हो गया । अाजकल ईस्वी सन् से शताब्दियों पूर्व भी यह काफी उन्नत
उन ग्रन्थों में से बहुत कम ही उपलब्ध हैं। अधिकांश स्थिति में थी। साथ ही विद्धज्जनों का यह भत भी है
साहित्य नष्ट हो चुका है, किन्तु जो उपलब्ध है, वह कि सुप्राचीनकाल में विध्यपर्वत के दक्षिण भाग में एक
तत्कालीन जैन साहित्यकारों के पांडित्य और ज्ञान पर ही भाषा बोली जाती थी। बाद में उसीसे समस्त द्राविड़
यथेष्ट प्रकाश डालने वाला है । कुछ प्रमुख तमिल जैन भाषाएं पैदा हुई । वह आदिम भाषा प्राचीन तमिल से
ग्रन्थों का परिचय आगे दिया जाता है। बहुत कुछ मेल खाती है । कुछ भी हो, इसमें तनिक भी तोलकाप्पियम्-यह एक व्याकरण ग्रन्थ है। तमिल संदेह नहीं कि द्राविड़ भाषाओं में तमिल सर्वाधिक भाषा के सभी व्याकरण ग्रन्थों का मूल तो यह माना प्राचीन है। इस भाषा पर संस्कृत का प्रभाव अन्य जाता है ही, पर साथ ही उपलब्ध सभी तमिल साहित्य द्राविड भाषाओं की अपेक्षा बहुत कम पड़ा है।
का यह पूर्ववती ग्रन्थ माना गया है। इसके कर्ता का समस्त तमिल साहित्य को तीन युगों में विभक्त
नाम तथा धर्म यद्यपि अज्ञात है, परन्तु इस ग्रन्थ के किया जाता है-संघकाल, शैवकाल और अर्वाचीनकाल ।
। कतिपय प्रसंगों की अन्तरंग समीक्षा द्वारा विद्वानों ने ईस्वी पूर्व पंचमशती से लेकर पंचम-षष्ठ शती तक
- इसे एक जैन ग्रन्थ माना है और यह सिद्ध किया है कि अर्थात् लगभग एक सहस्र वर्ष तक का काल संघकाल
इसका कर्ता संस्कृत, व्याकरण तथा साहित्य में भी
निर्विवाद रूप से प्रवीण रहा है। कहा जाता है। यही काल मुख्यतः जन-साहित्यकाल रहा है। कन्नड़ के समान तमिल के मूल को भी जैन तिरूक्कुरल-यह एक नीति ग्रन्थ हैं । तमिल साहित्य साहित्यकारों ने ही सींचा था । पाश्चात्य विद्वान मि० में इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। इसे एक प्रकार फेजर ने भारत के साहित्यिक इतिहास का विवरण से तमिल वेद कहा जाता है । एक परम्परा के अनुसार प्रस्तुत करते हए लिखा है-'यह जैनों के हो प्रयत्नों का इसके रचयिता का नाम कुदकुद ( अपरनाम एलाचार्य)
1-A Literary history of India.
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