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भावभूमि
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की खोज में हम आजीवन भटकते रहते हैं - नानाविध कष्ट भी सहते हैं । किंतु प्रतिस्रोतगामी सुखों को छोड़कर दुःखों के बीच प्रफुल्लित रहना सीखता है । इस प्रकार वह अपने उन संस्कारों को तोड़ता है जो हमें परिस्थिति का गुलाम बनाते हैं । यही तप का फल है - तपसा निर्जरा च । तप से निर्जरा होती है । निर्जरा का शब्दार्थ तो झाड़ देना है - तप से संस्कार दूर हो जाते हैं । किंतु निर्जरा का दूसरा अर्थ भी संभव है -जरा-हीनता । संस्कारों की गुलामी हमें जरायुक्त कर देती है - कमजोर बना देती है। तप द्वारा हम संस्कारों की गुलामी से मुक्त हो जाते हैं तो जरा (निर्बलता) से भी मुक्त हो जाते हैं - यही निर्जरा है। आत्मा पर कर्ममल चढ़ा है जो चेतना को प्रस्फुटित होने से रोक रहा है, तप से वह कर्ममल दग्ध हुआ तो आत्मा का बल (निर्जरस्त्व) प्रकट हो
गया।
अपने को दुःख देने में सुख मानना एक मनोरोग माना जाता है किंतु तप अपने को दुःख देना नहीं है, अपने मनोबल को सुदृढ़ बनाना है। एक पहलवान व्यायाम करके अपने को दुःख नहीं देता अपितु अपने शरीर का बल बढ़ाता है। बैठक निकालना कष्टप्रद भी हो सकता है- यदि किसी को सजा के रूप में बैठक निकालने को कह दिया जाये, किंतु बैठक निकालना यदि स्वेच्छा से किया जाये तो वह व्यायाम है । तप में हमें ऊपर से दिखायी देने वाली क्रिया कष्टप्रद प्रतीत होती है किंतु तप करने वाले का आन्तरिक अभिप्राय आत्मबल की वृद्धि करना होता है। यदि ऐसा नहीं है तो वह तप बाल तप है - अज्ञानी का तप है, ज्ञानी का तप नहीं ।
प्रवृत्ति में निवृत्ति
शरीर यात्रा के लिए कर्म आवश्यक है । साधु के भी कर्म छूटते नहीं हैं, गृहस्थ की तो बात ही क्या है। सभी कर्म किसी कामना से प्रेरित होकर किये जाते हैं। कामना तो बंधन का कारण है । अतः कर्म - मात्र बंधन का कारण है - एक अपेक्षा से यह बात सच है। किंतु क्या हम कर्म को अकस्मात् छोड़ सकते हैं? ऐसी स्थिति में शास्त्रकारों ने एक मार्ग निकाला कि कर्म करो किंतु साक्षिभाव को भुलावो मत । कर्म करना - यह प्रवृत्ति है; साक्षिभाव की स्मृति - यह निवृत्ति है । प्रवृत्ति से लोकयात्रा चलेगी, निवृत्ति से हमें अपने अस्तित्व का बोध बना रहेगा। यह साधनामय जीवन शैली का सूत्र है। जब तक सिद्धि प्राप्त नहीं तब तक हमें प्रवृत्ति - निवृत्ति के दोनों पंखों पर उड़ान भरनी होगी। प्रवृत्ति के साथ साक्षिभाव बना रहे, अप्रमाद का भाव बना रहे तो प्रवृत्ति निरवद्य है
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