________________
३८.
तपसा निर्जरा
हम सामान्यतः चाहते हैं कि हमें सम्मान मिले किंतु वस्तुतः सम्मान हमारी प्रगति को रोकता है। सम्मान से हम अपने को बहुत बड़ा मानकर पुरुषार्थ करना बंद कर देते हैं। अपमान हमें जगाता है । सामान्यतः मनुष्य अपमान नहीं चाहता किंतु विधायक दृष्टिकोण की बात ही और है। विधायक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति उन परिस्थितियों में अनुकूलता ढूंढ लेता है जिन परिस्थितियों को सामान्य व्यक्ति प्रतिकूल मानते हैं । यही तप है। हमने ऊपर संस्कारों की चर्चा की है। तप संस्कारों को तोड़ने का एक सशक्त उपाय है। हमारा संस्कार है कि भोजन खाने से शरीर पुष्ट होता है। अतः हम भोजन किए जाते हैं। भूख न लगी हो तो पाचक चूर्ण खाकर कृत्रिम रूप से भूख लगाते हैं कि भोजन न किया तो शरीर निर्बल हो जाएगा? वस्तुतः यह मान्यता एक पक्षीय है। दूसरा पक्ष यह भी है कि बिना भूख के या भूख से अधिक भोजन किया तो शरीर बीमार हो जायेगा, पर प्रायः हमें सत्य का एक ही पक्ष दिखा करता है, दूसरा पक्ष आँखों से ओझल रहता है। यदि मैं घर वालों से यह कहूं कि मैं आज भोजन नहीं करूंगा तो सब कहेंगे थोड़ा-सा तो खा ही लो नहीं तो शरीर कैसे चलेगा। एक मनुहार नाम की प्रथा है जिसके अन्तर्गत किसी आत्मीय जन को उसके मना करते रहने पर भी बलपूर्वक भोजन की अधिक सामग्री दे देना आत्मीयता का सूचक माना जाता है।
I
भोजन के प्रति हमारी आसक्ति शरीर के प्रति हमारी आसक्ति की सूचक है । शरीर की प्रथम आवश्यकता भोजन है। भोजन के बिना शरीर नहीं टिक सकता । अतः हम मान लेते हैं कि भोजन न मिला तो शरीर नहीं रहेगा । यह मान्यता झूठ भी नहीं है। झूठी मान्यता यह है कि यदि शरीर न रहा तो हम भी नहीं रहेंगे। हम सदा भोजन करते रहें तो भी शरीर सदा नहीं रहने वाला है । यदि शरीर के मरने का भय ही हमें भयभीत करता रहा तो उस भय से मुक्ति का कोई उपाय नहीं है । मृत्यु के भय से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि शरीर की मृत्यु को हम अपनी मृत्यु न मानें। यह तब ही संभव है कि हम द्रष्टा को दृश्य से अलग करके देख सकें। उपवास में हम द्रष्टा के उप (निकट) वास करके दृश्य से अपने को भिन्न करने का अभ्यास करते हैं । उससे देहाध्यास का संस्कार टूटता है 1
महाप्रज्ञ - दर्शन
अनुकूलता ढूंढने का और प्रतिकूलता से बचने का संस्कार छोटे से बड़े तक सभी प्राणियों में है । हम सब अनुस्रोतगामी हैं । दुःख से बचने की और सुख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org