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महाप्रज्ञ-दर्शन
० नाहं परतंत्र इति समाधिः
आत्मा की स्वतंत्रता का बोध-मैं परिस्थिति परिचालित यंत्र नहीं हूं। ० तरङ्गः सुखं न पदार्थैः
विज्ञान भी मानता है कि पदार्थ के भोग में सुख नहीं होता। जब मस्तिष्क में अल्फा तरंगें उत्पन्न होती हैं तब सुख और वे तरंगें तब उत्पन्न होती हैं जब व्यक्ति संयम, समाधि या ध्यान की स्थिति में होता है। ० अकर्मणा वृत्तिशोधनम्
. कर्म अकर्म तब बनता है, जब वृत्ति का शोधन होता है। वृत्ति का शोधन मनुष्य ही कर सकता है, पशु नहीं।
__ वृत्ति का शोधन-प्रवृत्ति-निवृत्ति । प्रवृत्ति दोनों क्रमों में है। वह दोनों के मध्य है। वृत्ति के बाद भी प्रवृत्ति होगी और वृत्ति के शोधन के बाद भी प्रवृत्ति होगी। किंतु जहाँ वृत्ति का शोधन हो गया, वहाँ प्रवृत्ति होगी और बाद में वास्तविक निवृत्ति होगी, पुनरावृत्ति नहीं होगी।
___ अकर्म की साधना से वृत्ति शोधन और वृत्ति के शोधन से आवृत्तियों की समाप्ति होती है।
।। इति रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ।।
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