Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 352
________________ ३३४ ० बुद्धिविकासश्च जो दस मिनट तक मस्तिष्क पर पीले रंग का ध्यान करता है, उसका बुद्धिबल शक्तिशाली हो जाता है। ० सर्वस्य निर्मलीकरणञ्च ध्यान निर्मल जलधारा है। वह जहाँ प्रवाहित होती है वहाँ से सारी गंदगी समाप्त होती चली जाती है। निर्मलता आती है, चित्त निर्मल, शरीर, वाणी, श्वास निर्मल, सब कुछ निर्मल होते चले जाते हैं । ० ऊर्जावृद्धिश्च तप के तीन फलित - ऊर्जा का अधिक संचय, ऊर्जा का अल्प व्यय, ऊर्जा का ऊर्ध्वकरण । यथार्थावबोधश्च o ० अन्तः प्रज्ञोपलब्धिश्च ध्यान की साधना यथार्थ की साधना है, प्रतिबिम्ब से परे जाने की साधना है । यथार्थ को पकड़ा जा सके तो अनेक समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है। महाप्रज्ञ - दर्शन हमारे समक्ष दो स्थितियां हैं। एक है तर्क और बुद्धि के विकास की और दूसरी है अन्तः प्रज्ञा के विकास की । ध्यान के बिना अन्तः प्रज्ञा या अन्तर्वृत्ति का विकास नहीं हो सकता । अन्तर्वृत्ति के विकास के बिना सही अर्थ में दर्शन का विकास नहीं हो सकता । ....वस्तुतः वही दर्शन हो सकता है, जो बौद्धिक और तार्किक चेतना के विकास के साथ-साथ दोनों के द्वारा उत्पन्न परिणामों पर नियंत्रण रखने की क्षमता का विकास करता है। ऐसा होने पर ही हमारी चेतना के विकास की सार्थकता है 1 O आत्मानुशासनोदयश्च ध्यान से भीतर का अनुशासन फूटता है, जिसे आत्मानुशासन कहते हैं । शरीर, श्वास, प्राण, वाणी और मन इन पांच के अनुशासन इकट्ठे होते हैं तो फिर एक होता है - आत्मानुशासन । ० नियंत्रणक्षमता च आनन्दातिशयश्च उत्तेजक परिस्थिति में नियंत्रण की क्षमता का विकास करना ध्यान के द्वारा संभव है। ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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