Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 354
________________ ३३६ महाप्रज्ञ-दर्शन प्रयत्नशील हैं। सभी व्यक्तियों से अच्छे परमाणु विकिरित हो रहे हैं। वे परमाणु तत्काल नष्ट नहीं होते। यदि लम्बे अर्से के बाद भी कोई व्यक्ति यहाँ आयेगा तो उसका मन आनन्दित होगा। इसी प्रकार यदि कहीं बुरे विचारों के व्यक्तियों का समवसरण होता है और वे सब व्यक्ति उस स्थान को छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं, फिर भी उस स्थान पर कोई व्यक्ति आयेगा, उसका मन उदास और खिन्न हो जायेगा। यह परमाणुओं का प्रभाव है। ० ज्योतिर्दर्शनञ्च हमें प्राण में मन को सम करना होगा। जैसे ही प्राण में मन को सम किया और सूक्ष्म जगत् के साथ हमारा सम्पर्क स्थापित हो गया, फिर रंग दिखाई देंगे, ज्योति दिखाई देगी, विचित्र प्रकार की दुनिया दिखाई देने लग जायेगी। यह कोई काल्पनिक दुनिया नहीं है। विचित्र सृष्टि हमारे आस-पास विद्यमान है। ० विधिपरिकदृष्टिश्च ० पापान्न्वृित्तिश्च ० विनम्रता च स्वयं को देखने से व्यक्ति निषेधात्मक भावों से विधेयात्मक भावों में आ जाता है। जिस चेतना में ज्ञाता-द्रष्टा चेतना विकसित हो गई वह अकरणीय कार्य नहीं कर सकता। कर्तव्य करेगा पर उसका अहंकार कभी नहीं करेगा। ० जीवने सरसता च अध्यात्म जीवन को नीरस नहीं बनाता । अध्यात्म ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन को अनन्त रसायन बनाने में समर्थ है। पदार्थ के सारे रस एक समय मात्र के लिए रस होते हैं, समय बीतने के बाद वे रसहीन हो जाते हैं। ० सूक्ष्मतत्त्वावगतिश्च अध्यात्म सूक्ष्म नियमों की खोज है। अध्यात्म केवल धर्म का ही विज्ञान नहीं है। वह प्रकृति की सूक्ष्मतम गुत्थियों को सुलझाने वाला विधान है। उसके द्वारा प्रकृति का सूक्ष्मतम अध्ययन होता है और सूक्ष्म नियमों का पता लगाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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