Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 346
________________ ३२८ महाप्रज्ञ-दर्शन समाज के क्षेत्र में एकत्व का आरोपण और एकत्व की सीमा में समाज का आरोपण करना सच्चाई को झुठलाना है। ० इच्छापूर्ती बाधा च क्रोध की उत्पत्ति के कारण-१. इच्छापूर्ति में बाधा, २. इच्छापूर्ति में असहयोग, ३. मनचाहा न होना। ० भयञ्च भय की पहली प्रतिक्रिया है-रोना। भय की दूसरी प्रतिक्रिया है-बुढ़ापा | भय के कारण आदमी बूढ़ा बनता है। जो अभय होता है, वह बूढ़ा नहीं होता। ज्यों-ज्यों अवस्था बढ़ती है, केश सफेद होते हैं। यह कोई बुढ़ापा नहीं है। वास्तव में शक्तियों का क्षीण होना बुढ़ापा है। __ भय की तीसरी प्रतिक्रिया है-मरण । डरने वाला व्यक्ति स्वाभाविक मौत नहीं मरता, आत्मघात करके मरता है। भय की चौथी प्रतिक्रिया है-विस्मृति। आदमी डरता है और उसकी स्मृति कमजोर हो जाती है। भय के कारण हमारे स्मृति-तंतु, ज्ञान-तंतु सिकुड़ जाते हैं। उनके सिकुड़ने से स्मृति कमजोर हो जाती है। भय की पांचवी प्रतिक्रिया है-पागलपन। आदमी पागल बनता है, विक्षिप्त होता है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं। किंतु बड़ा कारण है भय। कभी अकस्मात् ऐसा आघात लगता है, गहरी चोट लगती है कि आदमी सुध-बुध खो देता है। वह पागलपन की बातें करने लग जाता है। भय का आघात गहरा होता है। उससे आदमी पागल हो जाता है। भय के चार सूत्र बताए गए हैं १. सत्त्वहीनता। २. भय का सतत चिंतन। ३. भय की मति। ४. भय के परमाणुओं का उत्तेजित होना । १. सत्त्वहीनता व्यक्ति में पराक्रम नहीं है, बल नहीं है सत्त्व नहीं है। जब शक्ति पराक्रम और सत्त्व का अभाव होता है तब अकारण ही भय पैदा होता है। जिस व्यक्ति में अपने अस्तित्व के प्रति ग्लानि या हीनता का भाव नहीं है, वह चेतना सत्त्व-चेतना होती है। भय की उत्पत्ति का पहला स्रोत है-सत्त्वहीनता, शक्ति-शून्यता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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