Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 331
________________ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनः पादः ३१३ पद्म लेश्या का अभ्यास करने वाला व्यक्ति जितेन्द्रिय हो जाता है। कृष्ण और नील लेश्या में रहने वाला व्यक्ति अजितेन्द्रिय होता है । ० नासाने स्वर्णवर्णध्यानेन दूषितभावनापगमः तंत्र शास्त्र का एक प्रयोग है - नासाग्र पर स्वर्ण के रंग या श्वेत वर्ण का ध्यान करने से दूषित भावना से मुक्ति मिल जाती है। O षण्मासं शरीरे रक्तवर्णध्यानेन वीतरागतेति तान्त्रिकाः आकाशे स्वशरीरावस्थानध्यानेन च तंत्र शास्त्र का एक प्रयोग है - साधक पूरे शरीर को लाल सूर्य जैसे रंग में देखे, ध्यान करे। छह महीने में इस प्रयोग से वीतरागता सिद्ध हो सकती है। तंत्र शास्त्र का एक प्रयोग है - साधक अपने शरीर को आकाश में स्थित देखे और शरद् ऋतु की संध्या जैसे रंग का ध्यान करे। छह महीने तक निरन्तर ऐसा ध्यान करने पर वीतराग भाव घटित होने लगता है । ० पीत-रक्त-श्वेतवर्णानां ध्यानेन भावशुद्धिः अर्हं के ध्यान द्वारा भावों का भी अद्भुत ढंग से परिवर्तन होता है। जब हम गर्म रंगों (पीला, लाल, श्वेत) का ध्यान करते हैं और उनसे तन्मयता प्राप्त करते हैं तब हमारे भाव परिवर्तित हो जाते हैं । ० रश्मिविकिरणलक्षणः पदार्थः तस्मात्तस्याभामण्डलम् पदार्थ का लक्षण ही है रश्मियों का विकिरण करना। हर पदार्थ से रश्मियां निकलती हैं । रश्मियां ओरा बन जाती है । ० ० जीवरस आभामण्डलं परिवर्तिष्णु, न त्वजीवस्य पदार्थ में - अजीव में भी ओरा होती है। किंतु उसकी ओरा निश्चित होती है, वह बदलती नहीं । जीव की ओरा अनिश्चित होती है, वह बदलती रहती है । ० ० चेतनया तैजसशरीरं सक्रियम् तेन विद्युच्छरीरं तेन किरणविकिरणम् O O तेनाभामण्डलम् चेतना हमारे तैजस् शरीर को सक्रिय बनाती है। जब यह विद्युत् शरीर सक्रिय होता है तब वह किरणों का विकिरण करता है। ये विकिरण व्यक्ति के शरीर के चारों ओर वलयाकार में घेरा बना लेते हैं। यह भावमण्डल है । जैसा भावमण्डल होता है वैसा ही आभामण्डल बनता है। भावमण्डल विशुद्ध होगा तो o Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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