Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 333
________________ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ३१५ ० कफनाशेन लोभनाशः ० वायुनाशेन कामवासनाक्षयः बीमार व्यक्ति को यदि कफशामक औषधि दी जाती है तो उसमें लोभ की वृत्ति कम हो जाती है। वायुशामक औषधियों से काम-वासना शांत होती है। ० उपवासेन विषविरेचनम् उपवास इसलिए किया जाता है कि शरीर का रसायन बदल जाए, रसायनों की संरचना बदल जाए। खाते-पीते विषैले रसायन पैदा हो जाते हैं, संचित हो जाते हैं और वे रसायन मन में विकृति पैदा करते हैं। मन में जो विकार उत्पन्न होते हैं वे विकार अनायास ही उत्पन्न नहीं होते, वे हमारे शारीरिक विकारों के कारण उत्पन्न होते हैं। ० प्राणकेन्द्रसिद्धौ प्रमादमुक्तिः जो व्यक्ति प्राण-केन्द्र को साध लेता है, वह प्रमाद से छुट्टी पा लेता है। उसके मन में अरति नहीं होती, आर्त्त-भावना कम हो जाती है। उसका मन विपदाओं से मुक्त हो जाता है। पदार्थनिष्ठ रस समाप्त होने लगता है। वही रस बचता है, जो जीवन के लिए अनिवार्य होता है। ० कषायाः शमनीया इत्यध्यात्मम् ० ग्रन्थिस्त्रावाः परिवर्तनीया इति विज्ञानम् ० अहिंसया कलहशान्तिरित्यध्यात्मम् ऊ:करणेनेति विज्ञानम् ० शुभेन पापनिवृत्तिरित्यध्यात्मम ० आलोकितवर्णध्यानेनेति विज्ञानम् अध्यात्म की भाषा कषाय चेतना का शमन किए बिना अति-चेतना को नहीं जगाया जा सकता। विज्ञान की भाषा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव को बदले बिना व्यक्तित्व को नहीं बदला जा सकता। अध्यात्म की भाषा अहिंसा का विकास किये बिना संघर्ष और युद्ध के उन्माद को नहीं मिटाया जा सकता। ० ० र ० ० ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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