Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 330
________________ ३१२ महाप्रज्ञ-दर्शन में रहेगा तो अशुभ भाव को जागने का मौका नहीं मिलेगा । इसीलिए मंत्र का आलंबन लिया गया । प्रायश्चितं ग्रन्थिविमोचनम् जब मन में ग्रंथिपात हो जाता है तब नाना प्रकार की बीमारियाँ सताने लग जाती हैं। उन ग्रन्थियों को खोलने की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि है - प्रायश्चित | प्राचीन भाषा में प्रायश्चित और आज की भाषा में मनोविश्लेषण, आत्म-विश्लेषण । जब रोगी आत्म-विश्लेषण करता है तब मनः चिकित्सक उसकी सारी ग्रन्थियों को जान लेता है और उपायों से उन ग्रन्थियां को खोल देता है O o न नैराश्यं, नाकर्मण्यता हम लेश्या को बदलें । शक्ति का विकास करें। शक्ति का प्रयोग लेश्या को बदलने में करें। शक्ति के विकास और उसके सही प्रयोग के लिए लेश्या का बदलना जरूरी है । लेश्या तंत्र को बदलने की एक प्रक्रिया है । सबसे पहले हम चेतना का उपयोग करें। हम सम्यक् दृष्टि से यह विवेक करें - निराशा का भाव, शक्ति को क्षय करने का भाव और अकर्मण्यता का भाव जागता है तो वह व्यक्ति को जीवित ही मृत बना देता है | चेतन का पहला काम है कि व्यक्ति यह भाव करे - मैं निराशावादी नहीं बनूंगा, अपनी क्षमता का उपयोग करूंगा- जब यह भाव बन जाये तब इस भाव को आकार देने के लिए हम अपनी संकल्प शक्ति का उपयोग करें । इस स्थिति में लेश्या को बदलने का सूत्र हस्तगत हो सकता है। अशुभ- लेश्यानां शुभलेश्याभिरभिभवः जब दर्शन केन्द्र पर ध्यान सधता है तब आदतों में परिवर्तन आना प्रारम्भ हो जाता है। कृष्ण, नील और कापोत लेश्या के अशुभ रंगों से होने वाली आदतें तेजोलेश्या के प्रकाशमय लाल रंग से समाप्त होने लगती हैं, अचानक स्वभाव में परिवर्तन आता है । लेश्याध्यानेन शक्तिः रोगमुक्तिश्च रंग का ध्यान बहुत महत्त्वपूर्ण है । जो व्यक्ति श्वेत वर्ण में अर्हं का ध्यान करता है, वह नाना प्रकार की व्याधियों से मुक्त हो जाता है। उसके शरीर में संचित विष समाप्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति अरुण वर्ण का ध्यान करता है, उसमें तेजोलेश्या के स्पन्दन जागते हैं, उसकी मन की दुर्बलता समाप्त हो जाती है। मन की दुर्बलता को लेश्या ध्यान के द्वारा मिटाया जा सकता है। यदि हम चमकते हुए पीले रंग के परमाणुओं को आकर्षित करते हैं तो जितेन्द्रिय होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। हम जितेन्द्रिय हो सकते हैं । ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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