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परिभाषाधिकरणे समस्यापादः
२४७ ० शुद्धचेतना वीतरागता - शुद्ध चेतना का अर्थ है-वीतरागता। ० प्रतिकूलघटनोद्भवं तत्स्मृत्युद्भवञ्चेति द्विविधं दुःखम् ० प्रथमं ससीमम् द्वितीयमसीमम्
दुःख दो प्रकार का होता है। एक प्रतिकूल घटनाओं के कारण होने वाला दुःख, दूसरा है उन घटनाओं के आधार पर संवेदना से ढोया जाने वाला दुःख। ___घटना का दुःख ससीम होता है, थोड़ा होता है। संवेदना का दुःख असीम होता है। ० सुखसामग्री सुखसंवेदनं सुखचेतना चेति तिस्रोऽवस्थाः ० दुःखसामग्री दुःखसंवेदनञ्चेति द्वेऽवस्थे ० आत्मनि दुःखस्यात्यन्ताभावः
सुख की तीन अवस्थाएं हैं-सुख की सामग्री, सुख का संवेदन और सुख चेतना की आंतरिक अनुभूति । दुःख की दो ही अवस्थाएं हैं-दुःख की सामग्री और दुःख का संवेदन। आत्मा में दुःख है ही नहीं। ० समस्योत्पादक: परो न तु दुःखोत्पादकः
दूसरा कोई व्यक्ति समस्या पैदा कर सकता है, पर दुःखी नहीं बना सकता।
॥ इति परिभाषाधिकरणे समस्यापादः ॥
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