Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 309
________________ २६१ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः की बात समाप्त होती है। ये दोनों बातें हमारे सामने हैं। हर व्यक्ति यह अनुभव करे कि अगर विश्व में अशान्ति है तो उसका एक जिम्मेदार मैं भी हूँ। विश्व में शान्ति का प्रचार हो इसके लिए एक आहुति मेरे विचार की भी लगनी चाहिए। ० सुविधावादत्यागे स्वावलम्बनास्थायाम् आवश्यकतासक्तिविवेके रूपान्तरणे श्रद्धायाञ्चात्मन्यधिकारः अपनी आत्मा को अपना बनाने के चार उपाय हैं१. सुविधावादी दृष्टिकोण का परित्याग २. कोई दूसरा व्यक्ति सुख-दुःख नहीं दे सकता-इस आस्था का निर्माण ३. आवश्यकता और आसक्ति की भेदरेखा का बोध ४. आदत को बदला जा सकता है-इस श्रद्धा का निर्माण । ० सूक्ष्मदृष्ट्या सूक्ष्मज्ञानम् - सूक्ष्म पर्यायों को जानने के लिए सूक्ष्म दृष्टि का विकास जरूरी है और वह होता है विचारानुगत ध्यान या पर्याय ध्यान से। जब हम पर्याय का ध्यान करेंगे तब वह विकसित होगा। ० यथा ध्येयं तथा ध्याता ___ भावात्मक बीमारियों को मिटाने का पहला सूत्र है-आदर्श का चुनाव, इष्ट का चुनाव । व्यक्ति वैसा ही बनता है जैसा उसका आदर्श होता है। व्यक्ति का जैसा उद्देश्य होता है, लक्ष्य होता है, वैसा ही बन जाता है। आदर्श और व्यक्ति जब एकात्मक बन जाते हैं, तब परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और व्यक्ति आदर्श के अनुरूप बन जाता है। ० विश्लेषणेनावेशोपशमः एक उपाय है-विश्लेषण। संश्लेषण नहीं, विश्लेषण करें। क्रोध और चेतना को अलग-अलग कर दें। यदि हम यह विश्लेषण निरन्तर करते रहें तो आवेश शांत हो जाते हैं। ० अवचेतने धार्मिक आस्तिको वा जीवति न तु चेतने आस्तिक और धार्मिक होने के लिए अवचेतन के स्तर पर जाना होगा। चेतन स्तर पर जीने वाला आस्तिक कैसे ? ० अदर्शनं सुषुप्तिर्वा नयनमीलनार्थो लोके ० जागरणमन्तदर्शनं वाध्यात्मक्षेत्रे _बाहरी दुनिया में आँख बंद करने के दो अर्थ हैं-नहीं देखना, सो जाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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