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महाप्रज्ञ-दर्शन
इस अर्थव्यवस्था का प्रथम मानदंड यह होगा कि मनुष्य की जो प्राथमिक आवश्यकतायें हैं, उनकी पूर्ति के लिए उपभोक्तृवाद आड़े ना आये। इन प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो कुछ पदार्थ चाहिए उन्हें श्रमिक अपने श्रम से पूरा करेगा और उनके उत्पन्न करने के लिए अधिक पैसे वालों के द्वारा ऐसे उद्योग नहीं लगाये जायेंगे जो श्रमिक के हाथ ही काट दें। अर्थात् श्रमिक अपने श्रम से जो माल उत्पन्न करे वह मिल के माल के मुकाबले में बाजार में खड़ा ही न हो सके । इसका यह अर्थ होगा कि श्रमिक का महत्त्व बढ़ेगा और प्राथमिक आवश्यकता की चीजें महंगाई की चपेट में नहीं आयेंगी। महात्मा गांधी का खादी दर्शन इसी आधार पर खड़ा था लेकिन पंडित नेहरू की विकासवाद की पश्चिमी अवधारणा ने उसे चलने नहीं दिया। आज धन केन्द्र में है
धन का स्थान पहले भी महत्त्वपूर्ण रहा है, पर केवल धन महत्त्वपूर्ण नहीं था। क्षत्रिय आन-बान के पीछे सत्ता को भी दांव पर लगा देता था। कोई शरण में आ गया तो यह जानते हुए भी कि वह उसके लिए मुसीबत का कारण हो सकता है, वह उसकी सुरक्षा के लिए आखिरी दम तक लड़ता था। ब्राह्मण विसर्जन के लिए स्वेच्छापूर्वक विलासी जीवन को ठुकराने में अपना गौरव मानता था। शूद्र सेवा के बदले में प्रतिष्ठा प्राप्त करके संतुष्ट था। वैश्य के केन्द्र में अवश्य धन था किंतु वह भी धन की अपेक्षा अपनी साख को ज्यादा महत्त्व देता था, क्योंकि वह जानता था कि समाज में उसका अस्तित्व उसकी साख पर टिका है न कि उसकी चालबाजियों पर। आज अर्थ पर से समाज का नियन्त्रण हट गया और राज्य का नियन्त्रण हो गया, इसलिए अर्थोपार्जन के लिए साख महत्त्वपूर्ण नहीं रही बल्कि उन तौर-तरीकों का ज्ञान महत्त्वपूर्ण हो गया जिन तौर-तरीकों से सरकारी रुपया खींचा जा सकता है और बेईमानी जिन तौर-तरीकों का अभिन्न अंग है। इसी व्यवस्था का दूसरा नाम लाइसेंस परमिट राज है।
अर्थ व्यवस्था का एक रूप है-सरकारी ऋण। सरकार की तरफ से ऐसी योजनायें चल रही हैं कि पांच हजार जेब से लगाइये और पांच लाख ऋण में पाइये। कहा यह जा रहा है कि उस ऋण से व्यक्ति जो काम करेगा, वह कल्याण के होंगे। लेकिन हो यह रहा है कि व्यक्ति कर्जा लेकर अपना घर भर रहा है। जब वह कर्जा राष्ट्रीय स्तर पर लिया दिया जाता है तो कर्जा लेने वाले राष्ट्र को उस कर्जे की कीमत अपनी अस्मिता बेचकर चुकानी पड़ती है। जैसे ही हम किसी देश क कर्जदार होते हैं वह देश हमारी आन्तरिक व्यवस्था
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