________________
सामाजिक-आर्थिक तंत्र के चार मॉडल
६७
व्यावहारिक कार्यक्रम देते हैं, जबकि महात्मा गांधी उस ओर केवल संकेत ही कर पाते हैं । इस दृष्टि से ये दोनों युगपुरुष एक दूसरे के परिपूरक ही सिद्ध हो रहे हैं।
भूमण्डलीकरण की घटना अपेक्षाकृत नवीन है । महात्मा गांधी के जीवन का सक्रिय भाग तब रहा जब भारत पराधीन था । इसलिए वे अन्तर्राष्ट्रीयता के प्रति सचेत होते हुए भी राष्ट्रीयता से अभिभूत थे । आचार्य महाप्रज्ञ के लिए भारतीय राष्ट्रीयता का अर्थ उतना राजनैतिक या भौगोलिक नहीं है जितना सांस्कृतिक। भारत की धरती में रची बसी उदारता को उन्होंने अनेकान्त के माध्यम से उजागर किया है।
आचार्य महाप्रज्ञ ने प्राचीन को दोहन करके उसे नवीन के अनुरूप बनाया। ऐसा करने के लिए उन्होंने कभी भी प्राचीन को विकृत नहीं किया । उन्हें ऐसा करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ी, क्योंकि उन्होंने प्राचीन के सार्थक अंश को लिया । जो कुछ समसामयिक था उसे उन्होंने समसामयिक दृष्टि से ही देखा । प्राचीन के अनावश्यक मोह में पढ़कर समसामयिक को प्राचीन के साथ बलपूर्वक मिलाने की कोई चेष्टा उन्होंने नहीं की।
आधुनिक समाजशास्त्री आचार्य महाप्रज्ञ से अवश्य यह आशा कर सकते हैं कि वे समाज संचालन के कुछ विधायक सूत्र देंगे । यदि वे ऐसा करते तो समाजशास्त्र का एक नया प्रस्थान खड़ा कर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने नई समाज व्यवस्था की आत्मा तो प्रदान की किंतु उसे शरीर प्रदान करने का कार्य वे नहीं कर पाये। जो शरीर को ही देख पाते हैं उनकी दृष्टि में आचार्य महाप्रज्ञ ने समाजशास्त्र को कोई नया योगदान नहीं दिया, किंतु जो आत्मा को देखने में समर्थ हैं वे पायेंगे कि उन्होंने एक वैकल्पिक समाज व्यवस्था का सूत्रपात कर दिया है जिसका पल्लवन समाजशास्त्री कर सकते हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ को युगप्रधान की अभिधा प्रदान की गई है यह हम सबकी अपेक्षा से कहा गया है। वे स्वयं अपनी अपेक्षा से अपने आपको युगद्रष्टा मानते हैं। दोनों ही स्थितियों में उनका युगबोध प्रखर है। हम उन्हें युगप्रधान कहकर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे हैं और वे अपने को युगद्रष्टा मानकर अपनी निरभिमानता सूचित करते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org