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महाप्रज्ञ-दर्शन व्याधि हमारी शारीरिक बीमारी है, आधि हमारी मानसिक बीमारी है और उपाधि हमारी भावनात्मक बीमारी है। प्रश्न होता है कि व्याधि कैसे मिटे ? क्या शरीर-प्रेक्षा व्याधि को मिटाने की पद्धति है? हां, यह व्याधि को मिटाने की प्रक्रिया है, किंतु है परोक्ष प्रक्रिया। डॉक्टर व्याधि की दवा देता है, शरीर-प्रेक्षा में व्याधि की दवा नहीं दी जाती, उपाधि को मिटाने की दवा दी जाती है। उपाधि के उपचार से आधि मिटती है, इसलिए व्याधि मिटती है।
शरीर-प्रेक्षा की एक और निष्पत्ति है-प्रतिस्रोतगामिता। निरन्तर दूसरों को देखने के कारण हमारी दृष्टि ऐसी बन गई कि हम अपने आपको देखना भूल गए। हम भूल गए कि अपने आपको भी देखना चाहिए। शरीर-प्रेक्षा अपने आप को देखने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया प्रतिस्रोत की चेतना का निर्माण करती है जिससे यह फलित होता है कि दूसरों को देखना बंद करें और स्वयं को देखें। ध्यान के प्रारम्भ में हम संकल्प-सूत्र द्वारा दोहराते हैं-"स्वयं को देखें । अपने आप को देखने के लिए ही प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करें। यह सूत्र इसलिए बार-बार दोहराते हैं कि हमारे भीतर प्रतिस्रोत-चेतना का निर्माण हो।
शरीर-प्रेक्षा का मूल्य इसलिए है कि वह वर्तमान में लाभ का अनुभव कराता है। इससे हमारी चेतना का जागरण होता है, निर्मलता बढ़ती है, आनंद का स्रोत फूटता है और निर्मलता का-हल्केपन का अनुभव होता है।
सबसे सरल क्या है जो बिना किए होता है? वह है बुढ़ापा। इसे कोई चाहता नहीं और इसके लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। यह बिना प्रयत्न किए अपने आप उतरता है। इंद्रियों की शक्ति का नाम है यौवन और इनकी शक्तियों का क्षीण होना है बुढ़ापा। बुढ़ापे का पहला लक्षण है-अकड़ना, धमनियों का अकड़ना, हड्डियों का अकड़ना, रीढ़ की हड्डी का अकड़ना। अकड़न का नाम है बुढ़ापा । बुढ़ापे का दूसरा कारण है पाचक रसों की कमी। जैसे-जैसे अवस्था बीतती है, पाचक रस कम होने लग जाते हैं। न तो लीवर उतना पाचक रस छोड़ता है, न पेन्क्रियाज ठीक काम करते हैं, न आमाशय, न पक्वाशय और न आंतें उतना ठीक काम करती हैं। वे घिस जाती हैं, क्षीण हो जाती हैं। उस अवस्था में पाचक रस तो कम बनते हैं और खाना और भारी हो जाता है। खाने की चीजें भारी हो गई तो बुढ़ापा और जल्दी आएगा और आएगा वह भी दुःख देने वाला आएगा। . बुढ़ापे का तीसरा कारण है आवेश। क्रोध का आवेश, भय का आवेश और काम का आवेश-ये आवेश जितने तीव्र होते हैं, उतना ही बुढ़ापा दुःखदायी बनता है। चिंताएं भी बहुत रहती है। नियंत्रण की शक्ति कमजोर
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